प्रथम स्वछंद (साईकिल) यात्रा — भाग 'दो'
सितंबर 07, 2002 (दूसरा दिन) उसे जागना तो नहीं कह सकते। जब रातभर सोऐ ही नहीं तो सवेरे जागना कैसा? उठे और कोठे से बाहर हम आये…
सितंबर 07, 2002 (दूसरा दिन) उसे जागना तो नहीं कह सकते। जब रातभर सोऐ ही नहीं तो सवेरे जागना कैसा? उठे और कोठे से बाहर हम आये…
घुमक्कड़ होना आसान चीज़ नहीं। और यह भी नहीं है कि चाहे जिस उम्र में यायावरी शुरू कर दी जाये। यह “जब जागो तब सवेरा” वाली ची…
प्रथम परवाज़ के यह कुछ क्षण हैं जिन्हें-हमारा तो कहना ही क्या है-पाठकगण भी यात्रा-वृतांत की समाप्ति के उपरांत भुला नहीं सके…
“गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाक़ी सब गढ़ैया”- राजपूताना में अगर यह कहावत मशहूर है तो ऐसे ही नहीं है। वाक़ई में चित्तौड़गढ़ का किला…
अद्वितीय रुप से सुंदर और आश्चर्यजनक रुप से गुमशुदा "मयनाल महादेव मंदिर परिसर" को राजस्थान की नकाबपोश खूबसूरती की …
अरावली पर्वत श्रृंखला के ऊपर स्थित, बुंदी के किले से सफेद और नीले पुतित घरों का एक विशाल विस्तार दिखता है। उन बिखरे हुए से …