राजस्थान की नकाबपोश खूबसूरती — मयनाल महादेव, मेनाल

Menal Tourism

अद्वितीय रुप से सुंदर और आश्चर्यजनक रुप से गुमशुदा "मयनाल महादेव मंदिर परिसर" को राजस्थान की नकाबपोश खूबसूरती की ही संज्ञा दी जा सकती है। यहां खजुराहो के मंदिरों का प्रतिबिंबन करते मंदिर हैं, राजा पृथ्वीराज का तफ़रीह करने का महल है, सवा-सौ फीट उंचाई से गिरने वाला जलप्रपात है महानालेश्वर शिव मंदिर है और कुछ अन्य मंदिर जैसे बालाजी आदि तो हैं ही हरियल घास के दो बड़े लॉन भी पिकनिक मनाने के वास्ते हैं। इतना सब होने पर भी दिन-भर में जरा-भर से लोग यहां आते हैं, इनमें भी स्थानीय ही बहुमत में होते हैं। यह जगह इतनी शांत और प्यारी है कि पूरा दिन भर यहां बिता दें तो भी दिल न भरे। मित्रगणों के साथ हों या गृहस्थी के साथ, किसी भी तरह मेनाल आपको निराश नहीं कर सकता। चित्तौड़गढ-कोटा हाईवे पर स्थित होने के बावजूद इस जगह का गुमनाम रहना हैरान करता है। साढे आठ सौ बरस के पुष्टता से ज्ञात इतिहास वाले इस कमछुऐ स्थान के सफर पर चलिए चले चलते हैं, कुछ कदम मेरे साथ…


मेनाल भ्रमण यात्रा-वृतांत…
  1. इतिहास के झरोखे में मेनाल
  2. मेनाल के दर्शनीय स्थल
  3. मेनाल भ्रमण हेतु टिप्स व ट्रिक्स
  4. मेनाल कैसे पहुंचें
  5. मेनाल भ्रमण की तसवीरें
  6. मेनाल के निकट अन्य पर्यटक स्थल

इतिहास के झरोखे में मेनाल…


कभी महानाल के नाम से ज्ञात इस स्थान का नाम अपभ्रंश होकर मयनाल बना और अब इसे मेनाल के नाम से जाना जाता है। कभी यह जगह हाड़ौती राजपूतों के अधीन थी किंतु पीछे बेगू के शासक इसके अधीश्वर हो गये। सरकार अंग्रेजी के खात्मे के दसियों साल पीछे तक बेगू राजपरिवार की यह निजी संपत्ति रहा लेकिन 1955 में सरकार ने इसे भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया है। यही विभाग अब इसका प्रबंध करता है। पुष्ट इतिहास यह बतलाता है कि इस स्थान पर मौजूद मंदिरों का निर्माण चौहानवंशी राजा सोमेश्वर ने ग्यारहवीं शताब्दी में कराया था। इस स्थान को अधिक प्रसिद्धि पृथ्वीराज चौहान के समय से मिली। कहा जाता है कि राजस्थान की झुलसाने वाली तपन से बचने के लिए राजा पृथ्वीराज इसी ठिकाने का आसरा तकता था। इसी परिसर में एक महल भी इसी राजा द्वारा बनवाया गया बताते हैं। कदाचित् वर्तमान शिव मंदिर की दाहिनी बाजू वह भवन हो। कदाचित् इसलिए क्योंकि बंद होने के कारण हम उसे भीतर से नहीं देख सके।






मेनाल के दर्शनीय स्थल…


महानालेश्वर मंदिर

महानालेश्वर मंदिर में प्रवेश का मार्ग कंक्रीट से तैयार एक गलियारे से है, दोनों और जिसके बाग हैं। दाहिने बाजू वाले बाग में पत्थरों से तैयार बंकरनुमा एक सरंचना है जो उजाड़ नहीं मालूम पड़ती। गलियारे से होकर एक प्रवेश द्वार पर पहुंचते हैं। इसके ऊपरी भाग में एक छतरी है। गणपति और भैरव की मूर्तियाँ भी इसमें हैं। बराबर में पुजारी की खटिया पड़ी रहती है। द्वार पार करके खुद को एक खुले परिसर में पाते हैं। लाल पत्थर से इस पूरे परिसर का फर्श तैयार है। बायें हाथ को महानालेश्वर मंदिर है। देवाधिदेव महादेव शिव शंकर को समर्पित यह मंदिर मेनाल की पहिचान है। अन्य सभी शिव मंदिरों की भांति इसके द्वार पर भी नंदी विराजमान है, अंतर यह है कि नंदी बैल के आकार के आगे इसका चबूतरा अपर्याप्त नजर आता है। मंदिर के मंडप में असंख्य मूर्तियाँ बनीं हुईं हैं। मंडप के खंभे देख कर लगता है कि उनके ऊपरी भाग स्वाभाविक नहीं हैं, इन्हें बाद में बढ़ाया गया मालूम पड़ता है। भीतर से मंडप की छत में पड़ी दरारें स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाती हैं। बल्कि हाल वक्त तो सहारा देने के लिए लोहे के पोल लगा दिये गये हैं। गर्भ-गृह में मात्र एक शिवलिंग है। बाहर से मंडप की छत पिरामिड की आकृति की है किंतु पिरामिड की तरह नीरस सपाट नहीं है। कितनी ही मूर्तियाँ उस पर उकेरी गईं हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर अनेकानेक मूर्तियाँ बनी हुईं है। नटराज, शिव, नृत्य कलाओं और हाथियों की पत्थर से बनी मूर्तियाँ उनमें खास हैं। इनमें से कितनी ही मूर्तियों में आप खजुराहो के मंदिरों की झलक पायेंगे। मैथुन और कामक्रीड़ा में रत मूर्तियाँ राजस्थान में मेनाल के इलावा नीलकंठ महादेव और किराड़ू मंदिरों में भी पाई जाती हैं। मंदिर की बाईं बाजू कुछ खंडित भग्नावशेष हैं। ये भी वास्तव में छोटे-छोटे मंदिर ही हैं। इनकी दीवारों और खंभों पर पत्थरों से तराशी गई मूर्तियाँ हैं। एक बहुत गहरा कुंआ भी है। हरियाणा के कितने ही गांवों में इस कुंऐ की नकल देखी जा सकती हैं किंतु मूलाकृति फिर सच्चा मोती होती है। खंडहर अवस्था में होने पर भी इसके युवा दिनों की कल्पना की जा सकती है। जल इस कूंऐ में अब भी है।

सुहावादेवी के मंदिर

अव्वल तो मेनाल बाहरी पर्यटकों के लिए गुमनाम है। जो कुछ थोड़े आते हैं वह मयनाल महादेव मंदिर और जल-प्रपात को देखकर निकल लेते हैं। किंतु पहिले मयनाल मंदिर और पीछे मेनाल वाटरफॉल के भी उस पार एक और मंदिर भी है। इस मंदिर से थोड़ा हटकर धर्मशाला की शक्ल में एक मठ भी है। कहा जाता है कि ये दोनों ही कृतियाँ राजा सोमेश्वर की शाकंभरीवंशी रानी “सुहावादेवी” की बनवाई हुईं सौगात हैं। वास्तव में यह मंदिर भी शिव मंदिर ही है। इसके बाहर भी नंदी बैल की प्रतिमा है। किंतु यहाँ पर शांति अधिक है। हम मेनाल में एक पहर से भी अधिक रुके थे और इतने समय तक एक भी आदमजात हमने इधर नहीं देखा। कदाचित् यही वजह से इस प्रांगण में बहुत सफाई है। मंदिर के मंडप में कुछ मूर्तियाँ हैं। मंडप में ही बैठने के स्थान भी हैं। मंडप की छत का कटाव चित्तौड़गढ़ दुर्ग के मंदिरों से मेल खाता है। गर्भ-गृह में एक शिवलिंग है। इसके प्रवेश द्वार पर-फर्श में-शंख की प्रतिकृति बनीं हुईं हैं। हमारे ध्यान में ऐसा है कि कोई मूर्ति गर्भ-गृह में नहीं है। मंदिर से बाहर निकल कर मठ को हमने सामने से देखा। ऐसा लगा कि शायद ही कभी कोई वहां जाता हो। सन्नाटे की अपनी एक आवाज़ होती है। भयंकर सन्नाटे की आवाज़ बखूबी उस मठ में अनुभव की जा सकती है। कदाचित इसीलिये हमने रविंद्र का प्रस्ताव खराब कर दिया। वह रात को वहीं रुकना चाहता था परंतु हमारी हिम्मत न पड़ी। सुंदर भी इसके लिए तैयार न हुआ। मेनाल झरने में मुर्दों के कपड़े आदि के विसर्जन की बात पर भी हमें वहां से निकल लेने ही में भलाई दिखी।

मेनाल जल-प्रपात

त्रिवेणी में बनास नदी से संगम करने से तीस-चालीस कोस पहिले मेनाली नदी सवा या करीब डेढ़ सैंकड़ा फीट की उंचाई से गिरकर जो गाॅर्ज बनाती है संभवतः उसी वजह से इस जगह का नाम “महानाल” पड़ा होगा। जुलाई से सितंबर के मानसूनी मौसम में यह जल-प्रपात अपने पूर्ण यौवन पर होता है। वास्तव में वही समय मेनाल भ्रमण के लिए सर्वोत्तम भी है। एक पठार पर स्थित यह जगह ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए आदर्श है। इलावा इसके, आप बेगू की तरफ से घोड़े या ऊंट की सवारी का भी लुत्फ़ ले सकते हो। महानालेश्वर मंदिर के ठीक सामने एक प्रवेश द्वार से उतरकर आप मेनाल वाटरफॉल देखने जा सकते हैं। यहीं नहीं डेढ़ सैंकड़ा फीट नीचे प्रपात की गहराई में उतरने के लिए सीढ़ियाँ भी बनीं हुईं हैं। अगणित पत्थरों के ढेर वहां उपर-नीचे पड़े हुए हैं। उन्हीं के बीच से होकर धड़ाम पड़ती मेनाली नदी गुजरती है। “सुहावादेवी” के शिव मंदिर के कुछ अवशेष भी नीचे गिर पड़े देखे जा सकते हैं। जनवरी के जाड़ों में जब ऊपर से जल गिरता नहीं दिखाई दिया तो सीढ़ियों से होकर हम भी नीचे घूमने गये। बड़ी दिलचस्प जगह लगी। बहुत मजा आया। चीं-चीं करते पक्षियों की चहचहाट पूरे गाॅर्ज को गुंजा रही थी। बड़े-बड़े पत्थरों पर मुंह फुला कर और आंखें निकाल-निकाल कर तस्वीरें बनवाईं। पीछे फिर ऊपर की ओर चले। हमारे अतिरिक्‍त कुछ ही लोग सीढ़ियों से होकर आते-जाते मिले। जब सीढियाँ समाप्त ही होने वालीं थी तो प्रपात में नीचे तलहटी में से रोने-चीखने की आवाजें सहसा कानों में पड़ी। एकबारगी विश्वास न हुआ कि इतनी सुकूनबख्श खूबसूरत जगह पर कोई क्यों रोता है। हमने नीचे झुककर देखा तो दिखाई दिया कि औरतें रो रहीं हैं। यह इतनी करुण चित्कार थी कि जो दृश्य अभी तक मनमोहना नजर आता था तुरंत ही भयावना नजर आने लगा। गौर करने पर समझ आया कि कोई नन्हा बालक भगवान को प्यारा हो गया था और वे लोग उसके वस्त्र विसर्जन करने आये थे। पीछे औरत और मर्दों के टोले अलग अलग स्नान करने लगे। हम वहाँ न रुक सके और सुहावादेवी के मंदिरों की और चले गये। अनजाने में हमने एक फोटो भी लिया था जिसमें मुर्दों के विसर्जित कपड़े-लत्ते दिखाई देते हैं। नीचे वह फोटो दिखाते हैं।

मेनाल छतरी

मेनाल जल-प्रपात और महानालेश्वर मंदिर से करीब आधा मील आगे सड़क ही पर एक सुंदर छतरी बनी हुई है। यह उसी पुराने मार्ग पर है जो हाडौती को कभी मेवाड़ से जोड़ता था। छतरी वास्तव में बड़ी ही सहेजी हुई मालूम होती है। अब जो राष्ट्रीय राजमार्ग है वह मेनाल को बाईपास कर देता है। इसी छतरी के पास यह पुराना मार्ग आधुनिक राजमार्ग में मिल जाता है। इस पूरे परिसर की अतुलनीय सुषमा देख कर आप यही कहेंगे कि इस स्थान को गुमनामी के अंधकार में नहीं रहना चाहिये। हमें यह जगह इतनी शांत और प्यारी लगी कि मौका मिलने पर पूरा दिन भर यहां बिताना चाहेंगे। हम आसानी से किसी पर्यटक स्थल पर दूसरी दफे नहीं जाते, किंतु यहां दोबारा-तिबारा जाये बिना न रहेंगे।

मेनाल भ्रमण हेतु टिप्स व ट्रिक्स…


मेनाल भ्रमण का सर्वोत्तम मौसम

सर्दियों में हल्के ऊनी कपड़े पर्याप्त रहते हैं। सुबह और शाम में ठंडी अधिक होती है। गर्मी में तापमान यूं तो चालीस डिग्री सेल्सियस चढ़ जाता है किंतु इस चुभन को जल-प्रपात और चारों ओर की हरियाली महसूस कम होने देती है। गर्मीयों की सुबह और शामें शानदार होती हैं। हमारे विचार से मानसून का महीना मेनाल घूमने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। जिन्हें बारिश में भीगना पसंद नहीं उन्हें हमारी राय बचकानी लग सकती है। किंतु वास्तविकता यह है कि बरसात के दिन ही इधर को सैर-सपाटे के वास्ते सबसे अच्छे हैं। एक तो तापमान खुशगवार रहता है कि गर्मी परेशान नहीं करती। दूसरे सारा आलम हरियाली से ओतप्रोत नज़र आता है। तीसरी वजह है कि मेनाल वाटरफॉल है जो बारिश के दिनों में गदरा जाता है।

रुकना और खाना-पीना

रुकने के लिए मेनाल में बहुत सीमित जगह है, उस पर विकल्प कुछ नहीं है। मेनाल रिजार्ट में ही रुकने का प्रबंध बन सकता है। इसका किराया भी हजार-बारह सौ रुपयों से कम नहीं है। इसके अतिरिक्त कोई होटल या रेस्ट-हाऊस मेनाल में हो, ऐसा हमारी जानकारी में नहीं है। सस्ते विकल्पों के लिए मेनाल से नब्बे किलोमीटर दूर कोटा है और बीस किलोमीटर दूर मंडलगढ। खाने-पीने का इंतजाम मेनाल रिजार्ट में बढि़या है। इसके अलावा मुख्य राजमार्ग पर ढाबों की कोई कमी नहीं।

खुलने का समय

सवेरे आठ बजे से शाम पांच बजे तक आप मंदिरों और जल-प्रपात में भ्रमण कर सकते हैं। फिर भी कुछ जगहें ऐसी हैं जहाँ समय की पाबंदी नहीं है। वहां तक पहुँचने के लिए मुख्य द्वार के खुलने का इंतज़ार नहीं करना पड़ता।

शुल्क

चाहे भारतीय हो या विदेशी, किसी भी सैलानी के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। फोटो कैमरा या वीडियो कैमरा इस्तेमाल करने पर कोई टिकट नहीं लगता। किंतु हां, व्यावसायिक फोटोग्राफी के लिए पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के जयपुर मंडल से पूर्वानुमति लेनी आवश्यक है।

मेनाल कैसे पहुंचें…

सडक-मार्ग: मेनाल राष्ट्रीय राजमार्ग 27 पर स्थित है। हालांकि यहां कोई अंतर्राज्यीय बस अड्डा नहीं। किंतु चित्तौड़गढ़ और कोटा से सीधी बसें मिल जाती हैं। इसके अलावा टैक्सी सेवा बूंदी, कोटा और चित्तौड़गढ़ से मिलने में कोई दिक्कत नहीं है। भीलवाड़ा से बूंदी के बीच चलने वाली राज्य-परिवहन की बस का भी उपयोग कर सकते हैं जो बिजौलिया में उतार देती है। बिजौलिया से मेनाल की दूरी दस-बारह किलोमीटर है। यदि चार-पांच सिर हैं तो शेयर्ड टैक्सी बहुत बढ़िया विकल्प हैं।

रेल-मार्ग: मंडलगढ़ स्टेशन (MLGH) सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो मेनाल से लगभग बीस किलोमीटर दूर, कोटा-चित्तौड़गढ़ रेललाईन पर है। सबसे नजदीकी बड़ा रेल स्टेशन कोटा जंक्शन है जो चेन्नई, मुंबई, दिल्ली और इंदौर शहरों से सीधी रेल सेवा से जुड़ा है। कोटा से मेनाल की दूरी करीब साठ किलोमीटर है।

वायु-मार्ग: उदयपुर का डबोक हवाईअड्डा मेनाल का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। दोनों के बीच दूरी करीब एक सौ दस किलोमीटर है।

Entrance gate of Menal temple
↑ (1. महानाल मंदिर का प्रवेश द्वार, मेनाल, राजस्थान)

Full view of Menal temple
↑ (2. महानालेश्वर मंदिर, मेनाल, राजस्थान)

Statue of Nandi bull at Menal Shiv temple
↑ (3. महानाल मंदिर में नंदी बैल की मूर्ति)

Canopy Of Menal Temple
↑ (4. मेनाल मंदिर का मंडप। छत जीर्णावस्था को प्राप्त हो चुकी है इसलिये लोहे के जैक पर सहारा दिया गया है।)

Sanctum-sanctorum Shiv temple Menal
↑ (5. मेनाल में शिव मंदिर के गर्भगृह का प्रवेश-द्वार)

Sanctum-sanctorum Mahanal temple
↑ (6. मंदिर का गर्भगृह)

Sculpture art on rocks at Menal temple complex
↑ (7. मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार पर शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना)

Female Statue Menal Temple
↑ (8. यह, और आगे कुछ मूर्तियां, मंदिर की बाहरी दीवारों पर उकेरी गई हैं।)

Beautiful Rock Carving Idol Of Deity Menal
↑ (9. त्रिमुखी होने से यह सृष्टि के देवता ब्रह्मा की मूर्ति प्रतीत होती है।)

The art of the craft at Menal
↑ (10. इस मूरत में हमें श्रीकृष्ण की झलक दिखाई पडती है।)

Nude Female Statue Menal
↑ (11. खजुराहो के मंदिरों से प्रेरित एक और मूरत)

Sculpture art at Menal temple
↑ (12. महानाल मंदिर की दीवारों पर शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना)

Beautifully engraved rock statue at Mahanaleswar temple
↑ (13. पत्थर काट कर बनाई गई एक और सुंदर मूर्ति)

Sculptures at Menal temple
↑ (14. पत्थरों पर नायाब शिल्पकला)

Beautifully carved Menal temple
↑ (15. महानाल मंदिर गर्भगृह और मंडप)

Canyon of Menal waterfall
↑ (16. मेनाल जलप्रपात का मुख। सर्दियों में पानी न रहने से यह लगभग सूख जाता है। इस तसवीर को जूम-इन करने पर दिखाई देता है कि मरहूमों के वस्त्र यहां विसर्जित किये जाते हैं।)

Downstream stairs of Menal waterfall
↑ (17. मेनाल जलप्रपात में नीचे उतरने के लिऐ सीढियां)

Menal waterfall viewpoint
↑ (18. मेनाल वाटरफॉल व्यू पॉइंट)

Menal waterfall downside view
↑ (19. मेनाल जलप्रपात में नीचे उतरने के बाद यह तसवीर ली गई। इसमें हमारे सहगामी रविंद्र भाई दिखाई देते हैं।)

Shaky rocks and forest area Menal
↑ (20. मेनाल जलप्रपात में नीचे उतरते समय दिखाई दी ढह पडने को तैयार एक चट्टान। जूम-इन करने पर ही इसकी विशालता और ढीलेपन का भान होता है।)

Shivling at Mahanaleshwar temple
↑ (21. मेनाल जलप्रपात के उसपार एक अन्य शिव मंदिर और एक मठ अथवा धर्मशाला भी हैं। यह महानाल मंदिर के बनवाने वाले राजा की पटरानी-सुहावादेवी द्वारा बनवाये गये थे, ऐसी धारणा है। उसी मंदिर के गर्भगृह में यह शिवलिंग स्थापित है।)

Canopy Of Suhava Devi Temple Menal
↑ (22. यह सुहावादेवी के शिव मंदिर में मंडप की छत है।)

Small temples at Menal complex
↑ (23. वापस महानाल प्रांगण में। यह भग्नावस्था को प्राप्त हो चुके कुछ छोटे-छोटे मंदिर हैं।)

Idols of Ram-Hanuman deities at Menal temple
↑ (24. भग्नावस्था को प्राप्त हो चुके इन्हीं छोटे-छोटे मंदिरों में से एक का दृश्य। इसमें देखने में आता है कि रामेश्वरम् में श्रीराम, हनुमान के साथ, शिवलिंग पर जल चढा रहे हैं।)

Rock carving work in ruined temples of Menal
↑ (25. इन्हीं छोटे-छोटे मंदिरों में एक और मूरत।)

Inscription at Menal temple
↑ (26. राष्ट्रीय सरंक्षित स्मारक "मेनाल मंदिर समूह" के दिशा-निर्देश।)

Inscription about Mahanal temple and Monastery
↑ (27. महानाल मंदिर एवं मठ, मेनाल का संक्षिप्त इतिहास।)

मेनाल के निकट अन्य पर्यटक स्थल…

Bundi Tourism
↑ बूंदी, राजस्थान
Chittorgarh Tourism
↑ चित्तौड़गढ़, राजस्थान




यात्रा-कथा की कड़ियां
  1. हाडौती-मेवाड़ यात्रा-वृतांत (मुख्य लेख)
  2. हाड़ौती का ग़रूर — बूंदी
  3. राजस्थान की नकाबपोश खूबसूरती — मेनाल
  4. मेवाड़ का गौरव — चित्तौड़गढ

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने