फूलों की घाटी (यात्रा-वृतांत) भाग-2

आज हमें जोशीमठ से निकल कर पहले गोविंदघाट जाना था। वहां गाङी को पार्किंग में लगाकर ट्रैक शुरू करना था। हालांकि अब गोविंदघाट से तीन किलोमीटर आगे पुलना गांव तक सङक बन गई है लेकिन इस पर आप अपनी गाङी लेकर ना जायें चूंकि पुलना में कार पार्किंग की सुविधा नहीं है। हां, मोटरसाईकिलों के लिये पार्किंग की अच्छी सुविधा है। गोविंदघाट से पुलना तक जीप चलती हैं। उनमें भी जा सकते हैं या फिर पैदल भी निकल सकते हैं। हमने जीप पकङी और बीस मिनट में पुलना जा पहुंचे।

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पुलना से फूलों की घाटी के आधार-शिविर घांघरिया की दूरी करीब बारह किलोमीटर है। घांघरिया का एक और नाम गोविंद-धाम भी है। जब पुलना से ट्रेकिंग शुरू करते हैं तो सरदार ही सरदार अधिक मिलते हैं। या यूं कहें कि असल में पूरे पहाङी सङक मार्ग पर भी मिलते ही रहते हैं। इनमें से ज्यादातर का फूलों की घाटी से कोई लेना-देना नहीं होता अपितु ये हेमकुंड साहिब के यात्री होते हैं। गौरतलब है कि हेमकुंड साहिब सिक्खों के लिये बङी ही पवित्र जगह है और हर साल हजारों सिक्ख श्रृद्धालु हेमकुंड साहिब के दर्शन को आते हैं। और अब जबकि उनका यात्रा-सीज़न चल रहा है तो ये इतने होते हैं कि हर जगह सरदार ही सरदार दिखाई देते हैं। चाहे हेमकुंड हो, चाहे घांघरिया हो या फिर गोविंदघाट, हर जगह पगङियां ही पगङियां दिखाई देती हैं।

सुबह जोशीमठ से हम बिना कुछ खाये-पीये निकले थे। गोविंदघाट में भी कुछ नहीं खाया, हां लेकिन वहां से दाल-रोटी पैक करा ली। हमेशा की तरह कच्चा खाना बैग में रहता ही है। तो पुलना से निकल कर जैसे ही एक उपयुक्त जगह देखी तो वहीं डेरा जमा लिया। दाल-रोटी के साथ ठंडा पानी पीकर ऐसा आनंद आ गया कि एक घंटा वहीं पसरा रहा। जब चले तो एक बज गया था। घांघरिया के लिये ट्रेकिंग मार्ग बहुत ही बढिया बना है, चौङा और पक्का भी। हर एक किलोमीटर पर दूरी दर्शाने वाले बोर्ड भी लगे हुये हैं। तीन किलोमीटर चलने पर जंगल-चट्टी आता है। यहां खाने-पीने का अच्छा इंतजाम है। हालांकि यहां स्थाई ठिकाने कम और दुकानें अधिक दिखती हैं। जंगल-चट्टी से पांच किलोमीटर आगे है भ्यूंदर गांव। यह गांव इस ट्रेकिंग मार्ग पर बङी ही महत्वपूर्ण जगह है। अंतिम सङक बिंदु गोविंदघाट से आगे हमें लक्ष्मण-गंगा नदी के साथ-साथ ट्रेकिंग करनी होती है। इस नदी की घाटी, भ्यूंदर घाटी के नाम ही से जानी जाती है। यही नहीं स्वयं फूलों की घाटी भी भ्यूंदर घाटी क्षेत्र में ही स्थित है। गोविंदघाट से पहले विष्णुप्रयाग में बने जे.पी. हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को पहले भ्यूंदर घाटी की तराई में ही प्रस्तावित किया गया था, हालांकि पर्यावरणविदों के विरोध के आगे उसका दायरा सिकोङ दिया गया। अगर यह अपनी प्रस्तावित जगह पर बन जाता तो अपनी तरह का एशिया में पहला बांध होता जो लगभग आधा वर्ष बर्फ से ढकी हुई जगह पर काम करता। भ्यूंदर गांव में रात को रूकने और खान-पान की अच्छी सहूलियत है। असल में यह गांव ट्रेकिंग मार्गों के एक तिराहे पर आबाद है। एक मार्ग वो, जो नीचे गोविंदघाट को जाता है। एक मार्ग घांघरिया के लिये। और एक मार्ग लक्ष्मण-गंगा पार करके रूपढुंगी होते हुये आगे बढता है जो 4700 मीटर उंचा कुनकुल खाल और कुंकुल ग्लेशियर पार करके काक-भुंसडी ताल तक पहुंचता है। मोटे अनुमान के तौर पर भ्यूंदर से काक-भुंसडी ताल की दूरी बीस-पच्चीस किलोमीटर के आसपास है। वैसे काक-भुंसडी ताल के लिये एक रास्ता विष्णुप्रयाग से भी निकलता है। काक-भूसंडी ताल एक हिमालयी झील है जिसका पानी बारिश का मोहताज नहीं है। इस ताल की जलापूर्ति होती है कागभुसंड बामक से, जिसका पानी आगे चलकर अलकनंदा में ही समाता है। भविष्य में शीघ्र ही उस ओर का भी कार्यक्रम बनायेंगें। यहां समझिये कि गढवाल में ग्लेशियर यानि हिमनद को ही बामक अथवा खरक भी कहते हैं।

गोविंदघाट से भ्यूंदर तक रास्ता ज्यादातर औसत चढाई वाला ही है, हालांकि कहीं-कहीं उतराई भी है। भ्यूंदर से चार किलोमीटर आगे घांघरिया तक यह लगातार चढाई वाला है। भ्यूंदर से जैसे जैसे आगे बढते जाते हैं, चढाई और जगंल घनघोर होते जाते हैं। हमें इन चार किलोमीटरों को पूरा करने में तीन घंटे लग गये। जगंल भी बहुत घना है। इस मार्ग पर कभी भूल कर भी रात में यात्रा ना करें। हिमालयी भूरे भालूओं का वजूद है यहां और किसी पर भी भालू का कहर बरप सकता है। भ्यूंदर से घांघरिया तक एक दुकान के सिवा कोई आबादी नहीं है। यह दुकान भी स्थाई नहीं है और घांघरिया से लगभग दो किलोमीटर पहले है।


भ्यूंदर से निकलते ही बारिश के आसार बनने लगे थे। उपरोक्त दुकान तक पहुंचे तो रह-रह कर बूंदें टपकने लगीं थीं। घांघरिया की सीमा में प्रवेश करते करते तो बस किसी तरह बारिश रूकी हुई थी। लगा कि बादल कह रहे हों कि जल्दी पहुंचो भाई, अब हमसे बूंदों का बोझ सहन नहीं हो रहा। लेकिन हम बुरी तरह से पस्त जीव जल्दी के लिये कहां से उर्जा एकत्रित करते। जान लङा चुके थे ट्रेक पर। वाकई भ्यूंदर से घांघरिया तक की चढाई बङी टफ़ है। तो, बारिश के रूकने की हम केवल प्रार्थना कर सकते थे जो लगातार मंजूर भी हो रही थी। लेकिन कब तक? आख़िरकार घांघरिया से सौ मीटर पहले बादलों के सब्र का बांध टुट गया और रिमझिम बरसात शुरू हो गई। फिर भी सामने मंजिल देखकर किसी तरह भागे और बच गये। पसीने से लथपथ और चढाई की मेहनत से गर्म हुये शरीर यदि बरसात की चपेट में आ जाते तो बीमार पङ सकते थे। यद्यपि रेनकोट हमारे बैगों में मौजूद थे पर थकावट इतनी हो गई कि उन्हें निकालने में घोर आलस महसूस करने लगे। हम गुरूद्वारे में रूकना चाहते थे, पर पता नहीं था कि गुरूद्वारा है कहां? बारिश में ढुंढते भी तो कैसे? सो घांघरिया पहुंचते ही जो पहला होटल दिखा उसी में घुस गये। थकावट का आलम ये था कि खाना तक नहीं खा पाये। बस एक एक कॉफी पी कर सो गये।
Vishnuparyag
यह प्रपात विष्णु प्रयाग पॉवर प्रोजेक्ट के पास है।
Ghangria Trek
घांघरिया के लिये ट्रेक पथ।
Meals at Pulna
पुलना से आगे चलकर कुछ यूं हुई अपनी पेट-पूजा।
Manjeet Jaat
पेट-पूजा के बाद अब जाट के आराम का वक्त है।
Snake on Ghangria Trail
घांघरिया ट्रेक पथ पर नागदेव।
Waterfall at Ghangria
घांघरिया वॉटर-फॉल।


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