शिलांग यात्रा - तीसरा दिन (गुवाहाटी से शिलांग)

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उत्तर-पूर्व भारत की अपनी इस यात्रा पर निकले मुझे दो दिन हो गये हैं। कल रात ग्यारह बजे सोने के बाद अचानक जब आँख खुली तो ट्रेन को रूका हुआ पाया। सोचा कि चलो देखते हैं कहां तक पहुँचे। गाङी से उतरकर उन्नींदी आँखों से इधर-उधर देखा, सामने बोर्ड लगा था- गुवाहाटी। ओ तेरी... पहुँच गया मैं तो। भाग कर गाङी के अंदर गया और अपना सामान उतार लाया। बस इतना भर होने की देर थी कि गाङी ने चलने के लिए सीटी बजा दी। माँ कामाख्या बचा लिया तुमने वरना पता नहीं कहां से बैक-रेस लगानी पङती।

अब एक चाय वाले के पास चला गया। एक गर्मा-गर्म चाय पी और किसी गुसलखाने जैसी जगह को तलाशने लगा। भारतीय रेलवे स्टेशनों पर ऐसी जगहें मिल जाती हैं। अंबाला कैंट स्टेशन, हरियाणा (कोड-UMB) को मैंने इस तरह कई बार उपयोग किया है जब मिलिट्री इंजिनियरिंग सर्विस की भर्ती के सिलसिले में मुझे वहां जाना पङता था। यहां भी तलाश जल्द ही पूरी हो गई। स्टेशन पर ही मिल गई। अगर किसी को ढुंढना हो तो ज्यादा मुश्किल नहीं है, स्टेशन पर ही है। आराम से दिख जाता है। यहां सबसे पहले फ़ारिग हुआ फिर दंतमंजन किया और फिर खूब रगङ-रगङ कर नहाया। कपङे बदले, जो पिछले दो दिन दो रात में यू.पी.-बिहार-बंगाल में अपने उपर हुऐ ज़ुल्मो-सितम की कहानी चीख़-चीख़ कर बयान कर रहे थे। इन बेचारों की अधिक दुर्दशा शायद इसलिऐ भी हुई थी कि मेरी सीट कन्फर्म नहीं थी और मैं पूरी ट्रेन में किसी बंजारे की तरह भटकता रहा था।

घर वापसी का इंतजाम

चंट-शंट होकर स्टेशन से बाहर आया। गर्मी बिल्कुल नहीं थी। अच्छी रोशनी भी हो गई थी। यहां उत्तर-पूर्व में सवेरा जल्दी हो जाता है। मुझे अब पान-बाजार बस स्टैंड ढुंढना था जहां से शिलांग के लिऐ बस मिल जाती। एक-दो से पुछा तो पता चला कि रेलवे स्टेशन से ही शिलांग के लिऐ सूमो मिल जाती हैं जो लगभग उतने ही किराऐ में जल्दी पहुँचा देती हैं। ये भी पता चला कि ये सूमो सुबह लगभग नौ बजे चलना शुरू करती हैं। अभी पाँच से कुछ ही उपर का वक्त हुआ है। मेरे पास पूरे चार घंटे हैं। क्या करूं तब तक? गुवाहाटी शहर घूम लेता हूँ। गुवाहाटी स्टेशन से निकलते ही सामने एक इमारत है। मिलिट्री की किसी डिविज़न जैसा कुछ है। उधर ही चल पङा। इसके गेट पर कुछ हट्टे-कट्टे जवान हथियारों से लैस पहरा दे रहे थे। आगे बढ चला। थोङा ही आगे भारतीय रिज़र्व बैंक का स्थानीय कार्यालय है। और थोङा ही चला था एक तिराहा आ गया। बाँऐ हाथ को हो लिया पर कुछ ख़ास चहल-पहल नहीं दिखी। तभी दिमाग़ मे बात आई कि दिल्ली वापसी का टिकट तो मैंने करवाया ही नहीं है। गुवाहाटी शहर घूमना रद्द। उल्टे पांव हो लिया। गुवाहाटी में टिकटों का आरक्षण स्टेशन पर नहीं होता है बल्कि उसी मिलिट्री वाली इमारत की ओर बने टिकट-घर में होता है। अभी टिकट-घर खुला नहीं था पर लोगों की लाईन लगी थी। मैं भी लाईन में लग गया और टिकट-घर खुलने पर उसी अवध-असम एक्सप्रेस की, जिससे मैं आया था, की टिकट आरक्षित करवा ली। किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान। कहाँ तो बहादुरगढ से गुवाहाटी दस दिन पहले भी वेटिंग की टिकट मिली थी और कहाँ अब मात्र दो दिन पहले ही गुवाहाटी से बहादुरगढ की कन्फर्म टिकट मिली है। वाह! अब जाते वक्त आराम से लेट कर जाऊँगा। नौ से ऊपर का समय हो गया। अब वापस स्टेशन की ओर चलना चाहिये जहां से शिलांग के लिऐ सूमो पकङनी है। स्टेशन की ओर वापस चलते हुऐ एक और इमारत की चौथी मंजिल से गुवाहाटी स्टेशन के कुछ फोटो लिऐ जिन्हें नीचे लगा रखा है।

शिलांग की ओर

स्टेशन पर आते ही एक आदमी मिला जो दस रुपये में पाँच रोटी और अख़बार पर आलू की सब्जी बेच रहा था। शायद आस-पास के किसी गाँव से आया था। फ्रेश खाना दिख रहा था, जोरों की भूख लगी थी, फटाफट पंद्रह रुपये का माल पेट में सरका दिया। मौज हो गई। उदर-सेवा के बाद सूमो में जा बैठा। थोङी देर में गाङी भर गई और जी.एस. रोड पर शिलांग की ओर बढ चली। रास्ते-भर नज़ारे तो अच्छे हैं पर जगहों के नाम ऐसे ऐसे हैं जो किसी औसत उत्तर भारतीय के पल्ले नहीं पङते। मेरे तो नहीं पङे। कुछ पङे जैसे- लुम, माउडियांग आदि। शिलांग की ओर जाते हुऐ तो फोटो नहीं ले पाया लेकिन आते हुऐ कुछ अच्छे फोटोग्राफ्स ज़रुर लिऐ। सूमो वाले ने शिलांग पहुँचा तो दिया पर शहर में पूरी तरह घुसने से पहले ही एक चौक पर उतार दिया यह कहते हुऐ कि इससे आगे हम शहर में सवारी लेकर ही नहीं जाते। ख़ैर उतरना पङा। सभी से एक सौ पचास रुपऐ किराया ले लिया गया।

ढाई बज गऐ हैं। अब इस अनजान चौक से चलता हूँ शिलांग के पुलिस बाजार की ओर। सूमो वाले की शिकायत करने के लिऐ नहीं बल्कि अपने लिऐ कमरा ढुंढने। मैनें इंटरनेट से जानकारी ली थी कि यहां सही कमरे मिल जाते हैं। तो जी पुछते- पुछते पहुँच गया शिलांग के पुलिस बाजार में। काफी जगह पुछा। कोई-कोई तो सिरे से ही नकार देता। आख़िर एक जगह बात बन गई। कमरा देखा। छोटा सा ही था। साथ में पाखाना और गुसलखाना भी था। अपने लिऐ ठीक था। भाव बताया गया पाँच सौ रुपये। काफी थका हुआ था, ज्यादा मोल-भाव नहीं किया और एक रात के लिऐ कमरे को चार सौ रुपये अपना बना लिया। मोबाइल में टाइम देखा, चार बज रहे थे। साठ घंटे हो गऐ थे शरीर से काम लेते हुऐ। बिस्तर पर पङते ही नींद आ गई।

साढे छह बजे के लगभग वक्त हुआ था जब मेरी आँख खुलीं। ग़रम पानी उपलब्ध था तो नहा लिया। बहुत तरोताज़ा महसूस हुआ। अब करता हूँ रात के खाने का इंतजाम। होटल वाले से पुछा तो उसने टुटी-फुटी हिन्दी में बताया कि रोटी-चावल का इंतजाम होना तो मुश्किल है। जब बाहर भी कुछ ढंग का नहीं मिला तो माजा (आम का जूस) की एक बोतल और बिस्कुट का पैकेट ले आया और खा-पीकर सो गया।

 
Guwahati Railway Station
गुवाहाटी रेलवे स्टेशन




Police Bazar, Shillong, Meghalya
पुलिस बाजार शिलांग। सुबह का समय है इसलिऐ निर्जन दिख रहा है। (यहीं पर एक साफ-सुथरी गली में मैने कमरा लिया था)

उसी पुलिस बाजार का कुछ आगे चलकर दिन का फोटो (भीङ का अंतर स्पष्ट दिख रहा है)

अगले भाग में जारी। कृप्या यहां क्लिक करें।

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