फूलों की घाटी का कार्यक्रम रद्द हो जाने की वजह से मन बहुत दुःखी हो गया था। कई कोशिशें करने के बावजूद उत्तराखंड यात्रा बार-बार टल रही थी। इस बार तो ऐन मौके पर जाना रद्द हुआ, बैग तक आधे पैक हो गऐ थे और फिर से उत्तराखंड यात्रा टल गई। मैं खीज गया। तेरी ऐसी की तैसी। एक तू ही है क्या भारत में? उत्तराखंड, अब आऊंगा ही नहीं तेरे यहां। कहीं और चला जाऊंगा। पङा रह अपनी मरोङ में। फटाफट हिमाचल का प्रोग्राम बना डाला। हिमाचल की कई जगहें मेरी टारगेट-लिस्ट में शामिल थीं। शिपकी-ला, किब्बर, प्राचीन हिन्दुस्तान-तिब्बत रोड, एन.एच. 05, काज़ा आदि। कुछ बौद्ध मठों को भी साथ में देखने का कार्यक्रम बनाया और एक लंबी दूरी की मोटरसाईकिल यात्रा फिक्स हो गई।
यात्रा-प्रोग्राम
तय कार्यक्रम की एक झलक नीचे दिखा रहा हूँ।
पहला दिनः पिंजौर गार्डन देखते हुये शिमला तक और आगे प्राचीन हिन्दुस्तान-तिब्बत रोड से होते हुये रामपुर तक।
दूसरा दिनः कल्पा, रोघी देखते हुये सांगला घाटी और छितकुल तक।
तीसरा दिनः शिपकी-ला देखते हुये दुर्गमतम एन.एच. 05 से होते हुये गियू, नाको, धनकर और ताबो मठ घूमकर काजा तक।
चौथा दिनः किब्बर और कीह देखते हुये कुंजम पास, चंद्रा घाटी और रोहतांग पास से होते हुये मनाली तक।
पांचवा दिनः दिल्ली वापस।
इस प्रकार दिल्ली से चलकर शिमला, रामपुर, काज़ा, कुंजम, मनाली आदि का चक्कर लगा कर वापस दिल्ली आने तक का कार्यक्रम तय कर लिया। करीब 1700 किलोमीटर का सफर पाँच दिन में तय करना था। ये वाकई एक कठिन लक्ष्य था क्योंकि सङकों की हालत बहुत बढिया मिलने वाली नहीं थी। दो-तीन मित्रों को भी बताया तो रवींद्र ने साथ चलने का आग्रह किया। संभावित दिक्कतों के बारे में भी उसे बताया पर वो हिमाचल-दर्शन करना चाहता था और साथ चलने पर अङा रहा तो उसे भी ले लिया। 16 सितंबर 2015 को रात दो बजे प्रस्थान करने की ठहर गई। मगर हाय री किस्मत, यात्रा से दो दिन पहले जुकाम और बुखार ने घेर लिया। मैंने भी हार नहीं मानी। ठान लिया कि इस बार यात्रा रद्द नहीं करनी और किसी भी तरह तय समय पर ही निकलना पङना है और आखिरकार निकला भी। खराब सेहत के कारण यात्रा कैंसिल तो नहीं हुई पर बाद में कुछ प्रभावित जरूर हुई।
पहला दिनः पिंजौर गार्डन देखते हुये शिमला तक और आगे प्राचीन हिन्दुस्तान-तिब्बत रोड से होते हुये रामपुर तक।
दूसरा दिनः कल्पा, रोघी देखते हुये सांगला घाटी और छितकुल तक।
तीसरा दिनः शिपकी-ला देखते हुये दुर्गमतम एन.एच. 05 से होते हुये गियू, नाको, धनकर और ताबो मठ घूमकर काजा तक।
चौथा दिनः किब्बर और कीह देखते हुये कुंजम पास, चंद्रा घाटी और रोहतांग पास से होते हुये मनाली तक।
पांचवा दिनः दिल्ली वापस।
इस प्रकार दिल्ली से चलकर शिमला, रामपुर, काज़ा, कुंजम, मनाली आदि का चक्कर लगा कर वापस दिल्ली आने तक का कार्यक्रम तय कर लिया। करीब 1700 किलोमीटर का सफर पाँच दिन में तय करना था। ये वाकई एक कठिन लक्ष्य था क्योंकि सङकों की हालत बहुत बढिया मिलने वाली नहीं थी। दो-तीन मित्रों को भी बताया तो रवींद्र ने साथ चलने का आग्रह किया। संभावित दिक्कतों के बारे में भी उसे बताया पर वो हिमाचल-दर्शन करना चाहता था और साथ चलने पर अङा रहा तो उसे भी ले लिया। 16 सितंबर 2015 को रात दो बजे प्रस्थान करने की ठहर गई। मगर हाय री किस्मत, यात्रा से दो दिन पहले जुकाम और बुखार ने घेर लिया। मैंने भी हार नहीं मानी। ठान लिया कि इस बार यात्रा रद्द नहीं करनी और किसी भी तरह तय समय पर ही निकलना पङना है और आखिरकार निकला भी। खराब सेहत के कारण यात्रा कैंसिल तो नहीं हुई पर बाद में कुछ प्रभावित जरूर हुई।
यात्रा-प्रस्थान
रात दो बजे रविंद्र और मैं मेरी बजाज एक्स.सी.डी. 125 मोटरसाईकिल पर सवार होकर निकल पङे।
बदन में हल्की हरारत थी पर मैं ड्राईविंग के लिऐ तैयार था। खरखौदा मेरे घर से केवल 17 किलोमीटर दूर है और वहां तक जाने में ही आधा घंटा लग गया। फिर सोनीपत से NH-01 पर फर्राटे भरते हुऐ मुरथल, पानीपत होते हुऐ जो बाईक भगाई है कि तीन बजे तक घरौंडा जा पहुँचे। यहां पहला स्टॉप लिया और 15 मिनट में फिर चल पङे। पौने छह बजे अंबाला पहुँचे।
अंबाला के बाद NH-01 बायें अमृतसर के लिये चला जाता है और NH-05 (पहले NH-22 और प्राचीन हिन्दुस्तान-तिब्बत रोड के रूप में मशहूर) सीधे जीरकपुर की ओर निकल जाता है। NH-05 फिरोजपुर (पंजाब) को ग्रम्फू (हिमाचल प्रदेश) से जोङता है। काफी महत्वपूर्ण शहरों से होकर यह रोड गुजरता है जैसे- लुधियाना, चंडीगढ, शिमला, रामपुर, काजा, लोसर आदि। यह विश्व की सबसे दुर्गमतम सङकों में भी शुमार है। अंबाला के बाद जीरकपुर होते हुये हम पहुँचे यादवेन्द्र गार्डन्स, पिंजौर जो हरियाणा के पंचकूला जिले में है।
पिंजौर गार्डन
पिंजौर गार्डन को यादवेन्द्र गार्डन्स अथवा मुगल गार्डन्स के नाम से भी जाना जाता है। यह कालका-शिमला मार्ग पर पिंजौर गांव में स्थित है। यह सीढीदार बाग राजस्थानी-मुगलई वास्तु शैली का नायाब नमूना है और सात मंजिलों में बंटा हुआ है। इसे सत्रहवीं सदी में पटियाला राजवंश के द्वारा बनवाया गया था। हालांकि इसका डिजाईन और निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब के चचेरे भाई फिदाई खान द्वारा शुरू करवाया गया था। पूरा उद्यान एक चौङे जलमार्ग द्वारा दो भागों में बंटा हुआ है जिसके दोनों तरफ मखमली घास के कालीन बिछे हुऐ हैं। ऊपर से नीचे तक सातों मंजिलों में जलमार्ग के बीचों-बीच शानदार फव्वारे लगे हुऐ हैं। पूरे उद्यान में उगाये गये अलग-अलग किस्म के फूल यहां की आबोहवा को खुशबूओं से सराबोर रखते हैं।
पहली मंजिल पर है शीश-महल। यहां से पूरे उद्यान का बेहतरीन नजारा दिखता है। इसी मंजिल पर है हवा-महल। हवा-महल के बरामदों में गर्मी का कोई नामोनिशान नहीं। हवा के क्या गुब्बारे फूटते हैं यहां। किसी कूलर-पंखे की जरूरत नहीं।
दूसरी मंजिल पर है रंग-महल। नीची छत और मेहराबों वाली यह संरचना कभी रजवाङों द्वारा फुरसत के पलों का आंनद उठाने के लिये प्रयोग की जाती रही होगी। जब हम यहां पहुँचे तो इसके दरवाजों पर ताले लटके हुये थे।
तीसरी मंजिल पर साइप्रस और विभिन्न किस्म के पेङ उगाये गये हैं। बहुत सारे फूलों के पौधे भी इसी मंजिल पर हैं।
चौथी मंजिल पर है जल-महल। एक बङी झील के बीचोंबीच बनी हुई ये सरंचना बरामदेनुमा है जिसकी छत पर जा चढने के लिये बराबर में सीढीयां बनी हुई हैं। इसके ठीक सामने एक दालान भी है। झील को पूरा भर देने पर पानी इसके फर्श को छूने लगता है। इस झील में चारों ओर फव्वारे लगे हुये हैं, यहां तक की झील का दीवारों में भी।
पांचवी मंजिल पर फिर से विभिन्न किस्म के पेङ उगाये गये हैं। फूलों के पौधे भी इसी मंजिल पर हैं।
छठी मंजिल एक ओपन-एयर थियेटर की तरह है। सबसे ऊपरी मंजिल से बहकर आता हुआ पानी यहां से होकर उद्यान से बाहर निकल जाता है। इसके अंतिम छोर पर बङा सा दरवाजा लगा हुआ है।
पिंजौर गार्डन में प्रकृति के दीदार करने के अलावा और भी बहुत कुछ है करने को। आप छोटी सी टॉय-ट्रेन की सवारी कर सकते हैं। ऊंटों की सवारी कर सकते हैं। एक छोटा सा चिङियाघर भी है वो देख सकते हैं। रात के वक्त रोशनियां क्या कमाल करती हैं इस उद्यान में, उसका मजा लूट सकते हैं। खाने-पीने की कोई कमी नहीं है यहां। कुल मिलाकर बेहतरीन पारिवारिक मनोरजंक जगह है। पिंजौर गार्डन का प्रवेश शुल्क है केवल 20 रूपये।
पिंजौर गार्डन के बाद जब हम पहाङ के अपने सफर पर रवाना हुये तो पौने ग्यारह बज गये थे। यहां कुल मिलाकर ढाई घंटे का वक्त बिताया। इसके बाद जब शिमला की चढाई शुरू हुई तो मोटरसाईकिल कुछ दबने लगी। रोककर देखा तो पाया कि पिछले टायर में हवा कुछ कम है। सोलन पार करके पैट्रोल लिया और हवा भरवाई। दोपहर के 12 बजे का वक्त था और सुबह से केवल दो-दो गिलास दूध पिया था जो मैं घर से बोतल में भर कर लाया था। एक जगह बैठे तो थे चाय पीने पर फिर खाने का ऑर्डर भी दे दिया। बाहर धूप में बैठे सुस्ता ही रहे थे कि मेरी नजर एक मेहराबदार दरवाजे पर जा पङी जिससे होकर एक पहाङी पगडंडी उपर को जा रही थी। दरवाजे की मेहराब पर लिखा था- करोल टिब्बा और प्राचीन पांडवकालीन गुफा। कुछ चकित और कुछ खुशी के भाव चेहरे पर उभर आये। मैंनें करोल टिब्बे और इस गुफा के बारे में सुना जरूर था पर यह पता नहीं था कि इसका रास्ता यहां से होकर जाता है। हम जहां बैठे थे वो जगह सोलन से कुछ ही किलोमीटर आगे थी। मन किया कि चलते हैं वहां। पता किया तो मालूम हुआ कि करोल टिब्बा कम से कम पाँच किलोमीटर की चढाई पर है। यानि यहीं पर शाम हो जायेगी। यात्रा-कार्यक्रम बुरी तरह बिगङ जायेगा। फौरन करोल टिब्बा कैंसिल किया और खाना खाकर आगे बढ चले। डेढ बजे शिमला पहुँचे। शिमला का क्या बखान करना है। इसके बारे में तो अब सब भली-भांति परिचित हैं। बङा ही भीङ भरा शहर है चूंकि हिमाचल प्रदेश की राजधानी भी है। शिमला का यात्रा वृतांत मैं पहले ही एक बार लिख भी चुका हूँ। फिर यहां मैं रूकना भी नहीं चाहता था। क्यों खामखा वक्त खराब किया जाये। इसलिये दूर से दिखते जाखू के हनुमानजी को दूर ही से प्रणाम कर के कुफरी और ठियोग की ओर आगे बढ चले।
पिंजौर गार्डन में प्रकृति के दीदार करने के अलावा और भी बहुत कुछ है करने को। आप छोटी सी टॉय-ट्रेन की सवारी कर सकते हैं। ऊंटों की सवारी कर सकते हैं। एक छोटा सा चिङियाघर भी है वो देख सकते हैं। रात के वक्त रोशनियां क्या कमाल करती हैं इस उद्यान में, उसका मजा लूट सकते हैं। खाने-पीने की कोई कमी नहीं है यहां। कुल मिलाकर बेहतरीन पारिवारिक मनोरजंक जगह है। पिंजौर गार्डन का प्रवेश शुल्क है केवल 20 रूपये।
पिंजौर गार्डन के बाद जब हम पहाङ के अपने सफर पर रवाना हुये तो पौने ग्यारह बज गये थे। यहां कुल मिलाकर ढाई घंटे का वक्त बिताया। इसके बाद जब शिमला की चढाई शुरू हुई तो मोटरसाईकिल कुछ दबने लगी। रोककर देखा तो पाया कि पिछले टायर में हवा कुछ कम है। सोलन पार करके पैट्रोल लिया और हवा भरवाई। दोपहर के 12 बजे का वक्त था और सुबह से केवल दो-दो गिलास दूध पिया था जो मैं घर से बोतल में भर कर लाया था। एक जगह बैठे तो थे चाय पीने पर फिर खाने का ऑर्डर भी दे दिया। बाहर धूप में बैठे सुस्ता ही रहे थे कि मेरी नजर एक मेहराबदार दरवाजे पर जा पङी जिससे होकर एक पहाङी पगडंडी उपर को जा रही थी। दरवाजे की मेहराब पर लिखा था- करोल टिब्बा और प्राचीन पांडवकालीन गुफा। कुछ चकित और कुछ खुशी के भाव चेहरे पर उभर आये। मैंनें करोल टिब्बे और इस गुफा के बारे में सुना जरूर था पर यह पता नहीं था कि इसका रास्ता यहां से होकर जाता है। हम जहां बैठे थे वो जगह सोलन से कुछ ही किलोमीटर आगे थी। मन किया कि चलते हैं वहां। पता किया तो मालूम हुआ कि करोल टिब्बा कम से कम पाँच किलोमीटर की चढाई पर है। यानि यहीं पर शाम हो जायेगी। यात्रा-कार्यक्रम बुरी तरह बिगङ जायेगा। फौरन करोल टिब्बा कैंसिल किया और खाना खाकर आगे बढ चले। डेढ बजे शिमला पहुँचे। शिमला का क्या बखान करना है। इसके बारे में तो अब सब भली-भांति परिचित हैं। बङा ही भीङ भरा शहर है चूंकि हिमाचल प्रदेश की राजधानी भी है। शिमला का यात्रा वृतांत मैं पहले ही एक बार लिख भी चुका हूँ। फिर यहां मैं रूकना भी नहीं चाहता था। क्यों खामखा वक्त खराब किया जाये। इसलिये दूर से दिखते जाखू के हनुमानजी को दूर ही से प्रणाम कर के कुफरी और ठियोग की ओर आगे बढ चले।
ढाई बजे कुफरी पहुँचे। कुफरी भी लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। यहां रस्सों पर आधारित कुछ रोमांचक खेलों का आनंद लिया जा सकता है। हाल में इसके पहाङ गंजे हुये पङे थे। प्रदूषण बढ रहा है। हरियाली काफी कम होती जा रही है जबकि इस कम उंचाई पर पेङ-पौधे तो बहुतायत में होने चाहियें। घोर व्यवसायिक पर्यटन ने ही कुफरी जैसी सुंदर जगहों की यह दशा कर दी है। कुफरी से चलकर ठियोग पहुँचे। अब सेब के पेङ भी दिखने लगे थे। रात दो बजे से चल रहे थे। हमारी और मोटरसाईकिल की हालत खराब होने लगी थी। फिर कुछ-कुछ मौसम भी खराब होने लगा था। इसलिये जब पाँच बजे नारकंडा पहुँचे तो रामपुर की बजाय यहीं पर डेरा डालने का फैसला कर लिया। पहले दिन का सफर पूरा हुआ और कुल मिलाकर लगभग 410 किलोमीटर की दूरी तय की।
अगले भाग में जारी.....
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2. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (नारकंडा से कल्पा) भाग-02
3. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (कल्पा से चांगो) भाग-03
4. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (चांगो से लोसर) भाग-04
5. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (लोसर से कुल्लू) भाग-05
6. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (कुल्लू से दिल्ली) भाग-06
7. स्पीति टूर गाईड
8. स्पीति जाने के लिये मार्गदर्शिका (वाया शिमला-किन्नौर)
9. स्पीति जाने के लिये मार्गदर्शिका (वाया मनाली)