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कल रात में हम सब भैंरो बाबा के मंदिर पहुँच गऐ थे और दर्शन करने के बाद वहीं धर्मशाला में रुक गऐ थे। आज सुबह जाग उठने के बाद हल्का-फुल्का नाश्ता किया और वापसी की सुरती भर दी। रात को आराम करने को मिल गया था तो अब थकान ना के बराबर थी। अपने-अपने झोले उठाऐ और कटरा के लिऐ उतराई शुरु कर दी। आज की देर रात जम्मू से दिल्ली तक नवयुग एक्सप्रेस में हमारा आरक्षण था। कोई जल्दी नहीं थी। इसलिऐ आराम से प्रकृति के नज़ारे लेते हुऐ चल रहे थे जबकि माताजी और पिताजी चाहते थे कि फटाफट कटरा पहुँच कर शाम तक आराम की नींद ली जाऐ। कुछ देर हम तीनों (मैं, मेरी पत्नी मनीषा और मेरा अनुज बंटी) उनके साथ अनमने मन से जल्दी-जल्दी उतरते रहे। पर आखिर इतनी मनमोहक दृश्यावलियों को दिल में बसाऐ बिना कैसे हम यूँ ही जाकर कंक्रीट की चारदीवारियों में जा पङें।
शीघ्र ही बग़ावत कर दी गई। जनक पार्टी से कह दिया गया कि आप चल कर आराम करें, हम आराम से घुमते हुऐ अपने आप आ जाऐंगे। उनके जाने के बाद तो हम अपनी मर्जी के मालिक थे। जहां चाहें जितनी देर चाहें घुमने को स्वतंत्र थे। जाहिर है इस आजादी का खूब फ़ायदा भी उठाया गया। प्राकृतिक दृश्यों का खूब आनंद लूटते हुऐ, फोटो क्लिक करते हुऐ लगभग छह घंटों में हम कटरा पहुँचे थे। इसमें भी ज्यादातर वक्त तो अर्धकवारी से उपर ही बीत गया। जबकि चढाई के दौरान हमने बमुश्किल चार घंटे का समय लिया था। वो भी तब जबकि माताजी के घुटनों में दर्द रहता है।
चलिऐ आप लोगों को भी दिखाते हैं वैष्णों देवी से कटरा वापसी के फोटो।
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दुर से दिखता सांझी-छत हैलीपैड |
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पहाङ की गोद में बंटी महाराज |
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घुमक्कङ |
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ऐसी पुरसुकून जगह पर यदि ऐसी जिंदगी मिले तो ये टुटी खपरैल भी महल-सा आनंद देगी। |
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इसी महल का बैकयार्ड |
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प्रेम-भेंट |
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वानर-सेना का एक और महारथी |
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देवर-भाभी |
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लंगूर-दर्शन |
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लंगूर यहां बेखटके घुमते हैं। |
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बंटी महाराज किसी चीज के बिल्कुल पास से फोटो खिंचवाने के लिऐ उपर पहाङ पर चढ गऐ। इस फोटो में वो चीज बिल्कुल ऊपर दाईं ओर एक काले धब्बे या प्वाइंट के रुप में है। चीज साफ नहीं दिख रही? कोई बात नहीं, अगले फोटो में जरा पास ले आते हैं। |
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अब दिखी वो चीज? दिख ही गई होगी, पीछे पहाङ की चोटी के पास। ये जनाब चाहते थे कि इनके किसी फोटो के बैकग्राउंड में उङता हुआ हेलिकॉप्टर हो। घुमक्कङ ने बजा फरमाया इच्छा को। |
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बंटी जहां बैठा है उसके ठीक पीछे सैंकङों फीट गहरी अंधी खाई है। बीच में बमुश्किल एक फीट का गैप और फिर सपाट खङा पहाङ। बैकग्राउंड में कटरा नगर का विहंगम दृश्य |
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सांझी-छत पर बंटी |
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पीछे पहली पहाङी पर हेलीपैड है, फिर और पीछे एक और पहाङ, फिर और पीछे से दाऐं त्रिकुटा पर्वत (भवन और पवित्र गुफा) |
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कोल्ड ड्रिंक पान करते हुऐ वानर-श्री |
और भी काफी सारे फोटो खींचे। पर सब के सब तो यहां डाल नहीं सकता हूँ। और ज्यादा नजारे लेने हैं तो भारत-भर में कहीं से भी ट्रेन पकङिऐ और हो आईऐ। सांझी-छत के बाद का कोई भी फोटो इस यात्रा-वृतांत में तो नहीं है। हां वैष्णों देवी यात्रा की एक अलग से पोस्ट इसी ब्लॉग पे है, उस में है। वह पोस्ट संपूर्ण यात्रा-वृतांत नहीं है। बस एक घटना का जिक्र है जब यमदेव को बिल्कुल सिर पर हंटर लिऐ महसूस किया। तब ऐसा लगा था कि बस आज तो हो गया काम तमाम। कुछ फोटो हैं। एक तो चाय की दुकान का है। चाय का नाम भी ऐसा कि कहीं भी सुना नहीं होगा।
दोपहर बाद हम कटरा अपने माता-पिता के पास पहुँचे। वे पहले से बुक करवाऐ गऐ कमरे पर आराम ले खर्राटे ले रहे थे। खाना खाकर आऐ ही थे। कुछ देर हमने भी आराम किया और फिर कटरा बस अड्डे से बस पकङ कर जम्मू रवाना हो गऐ। देर रात नवयुग एक्सप्रेस स्टेशन पर आ लगी और हम उसमें जा चढे। थके हुऐ थे ही। अपनी-अपनी सीटों पर पङते ही नींद आ गई। अगले दिन दोपहर बारह बजे के आस-पास बहादुरगढ पहुँचे और फिर बीस मिनट में अपने घर।
जय माता दी
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जम्मू स्टेशन पर मां और पिताजी |
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अगले दिन पिताजी ड्यूटी के लिऐ फिर तैयार |