हाड़ौती का ग़रूर — बूंदी (राजस्थान)

Bundi Tourism

अरावली पर्वत श्रृंखला के ऊपर स्थित, बुंदी के किले से सफेद और नीले पुतित घरों का एक विशाल विस्तार दिखता है। उन बिखरे हुए से भवनों में कुछ बडी पुरानी हवेलियां हैं जो क्षेत्र की समृद्ध विरासत से आगंतुक को अवगत करातीं हैं। बूंदी शहर तीन तरफा अरावली से घिरा पहाड़ियों के कंठ मध्य बसा हुआ जान पड़ता है। यह उठती-उतरती संकरी गलियों वाला नगर है। चौगान गेट के पास बहुधा परिस्थिति ऐसी हो जातीं है कि किसी चौपहिया वाहन के पास निकलने का कोई मार्ग नहीं होता। इन संकरी गलियों में खुलते मकानों, दुकानों और दालानों के दरवाजे़ आमतौर पर उंची सीढ़ियों वाले होते हैं। चौगान गेट की लगती बाज़ार बहुत बड़ी तो नहीं, किंतु हां, रंग-बिरंगे सामानों से युक्त जरुर है। मसाले, रंगीन लिबास, फल और दूसरी कितनी ही चीजें बिक्री के लिए वहां सजी धरी रहती हैं। बूंदी अपने सुशोभित क़िलों, महलों और बावड़ियों के लिए विदेश में बडा प्रसिद्ध है। जी हां, इस खूबसूरत नक्श के देसी कद्रदान कम ही हैं। कितने ही मंदिर भी इस नगर में शोभायमान हैं। वृहद इतिहास वाले इस कमछुऐ नगर के सफर पर चलिए चले चलते हैं, कुछ कदम मेरे साथ…


बूंदी भ्रमण यात्रा-वृतांत…
  1. इतिहास के झरोखे में बूंदी
  2. बूंदी के दर्शनीय स्थल
  3. बूंदी भ्रमण हेतु टिप्स व ट्रिक्स
  4. बूंदी कैसे पहुंचें
  5. बूंदी भ्रमण की तसवीरें
  6. बूंदी के निकट अन्य पर्यटक स्थल

इतिहास के झरोखे में बूंदी…

किसी ऐतिहासिक स्थान के भ्रमण से पहले वहां के इतिहास के कुछ जानकारी होना लाजिमी है। तो जानिए कि नगर बूंदी आजकल का आबाद नहीं है। पहले यह क्षेत्र हाड़ा राजपूतों द्वारा शासित था। हाड़ा राजपूतों ने चौदहवीं सदी के पूर्वार्ध में इसे मीणाओं से छीना था। अगले सवा दो सौ सालों तक, जब तक कि अकबर ने 1569 में आधिपत्य न जमा लिया, हाड़ा राजपूत “राव” की उपाधि के साथ मेवाड़ी सिसोदियों के जागीरदार के रुप में यहां शासन करते रहे। पीछे मुगलई शासन में भी यही लोग जागीरदार रहे। इस तरह चौदहवीं शती के मध्य से उन्नीसवीं शती के प्रथम चौथाई कालखंड तक हाड़ा राजपूतों का शासन यहाँ रहा। 1818 में हालांकि अंग्रेजों ने इसे कब्जा किया किंतु देसी रियासत के रुप में हाड़ा किसी तरह बहुत पीछे तक, जब तक सरकार अंग्रेजी ख़त्म न हो गई, दरबार में तख़्त पर काबिज़ रहे। इस प्रकार जो नाम इलाके का आरंभ ही में इन्होंने बदल दिया था वह लंबे समय तक अंडर में रहने की वजह से यूं पक गया कि अब भी लोग इस क्षेत्र को “हाड़ौती” के नाम से पुकारते हैं। कोटा-बूंदी के साथ और भी बहुतेरे नगर, ग्राम व ढाणियां हाड़ौती में गिनी जातीं हैं। राजपूतों के इलावा जाट भी बहुत पीछे से यहाँ रहते आये हैं बल्कि कहना है कि जाट ही पूर्व में शासकीय मुद्रा में थे। इसकी तसदीक़ के लिए चंद पंक्ति उक्त किये देते हैं। अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान, उन्नीसवीं सदी के लगभग मध्य में राव राजा रामसिंह तख़्तनशीं थे और नाबालिग होने के कारण “जेम्स टाड” को उनका सरंक्षक नियुक्त कर दिया गया था। जेम्स टाड बहुत प्रसिद्ध फिरंगी इतिहासकार हो गये हैं जिन्होंने “टाड राजस्थान” समेत अनेकों ऐतिहासिक ग्रंथ अंग्रेजी दासता की समय के लिखे हैं। इन को एक दफे कुंंआ-खुदाई के दौरान पाली लिपि में खोदित एक शिलालेख मिला था। शिलालेख घटनाचक्रों को इतिहास के गर्भ से बाहर निकाल सबसे पुख्ता तसदीक़ करते हैं। यह शिलालेख प्रमाणित करता था कि जाट नरेश “कार्तिक”-जिन्होंने कि यूनानी आक्रांता मिन्डर से लोहा लिया था-का उस भू-क्षेत्र पर शासन रहा है जिसे आज कोटा-बूंदी अथवा कहिए कि हाड़ौती के नाम से जानते हैं। पीछे यह शिलालिपि एशियाटिक सोसायटी को सौंप दी गई थी। रामचंद्रपुरा के जिस क्षेत्र में यह मिली थी वह आज भी कोटा में आबाद है। (पढ़ें: हाड़ौती पर जाट शासन का इतिहास) एक महाविद्वान जाट का जिक्र भी यहां करना चाहते हैं जो इन्हीं राव राजा रामसिंह के आमंत्रण पर दरबार बूंदी में पधारे थे और बडे बडे ज्ञानियों को शास्त्रार्थ में पटखनी दी थी। किंतु अभी अधिक विस्तार में जाना कहीं हमें विषयातीत न ले जाये, अतः उक्त प्रसंग को हम जाटस्थान के लिए रख छोड़ते हैं। (पढ़ें: जाट विद्वान निश्चलदास जी)

बूंदी के दर्शनीय स्थल…

तारागढ़ दुर्ग

तारागढ़ किला संभवतः बूंदी का सर्वाधिक प्रसिद्धी पाया स्थान है। कहा जाता है कि इधर-उधर को निकलीं अपनी दीवालों के कारण यह नभमंडल से किसी तारे के समान जान पड़ता है और यही वजह से तारागढ़ कहलाता हैं। टिकट कटाकर हम किले में घुसे। अंदर घुसते ही आपके सामने एक खाली मैदान होता है। बगै़र अधिक पैर चलाये आप तुरंत ही किले की ओर दायें मुड़ सकते हैं या थोड़ी चहलकदमी करके मैदान के उस पार खंडहरों और बैरकनुमा अवशेषों को देखने बढ़ सकते हैं। हम उन अवशेषों को देखने गये थे। बैरकनुमा अवशेषों को देखकर लौटने पर भारी-भरकम पत्थरों से सुरक्षित बुनी मोटी दीवारों के बीच से चढ़ाई भरा पथरीला रास्ता यकायक यू-टर्न लेकर हमें किले के अंदरूनी द्वार तक लेकर पहुंचा, नाम है जिसका हाथी-पोल। हाथी पोल इसलिये क्योंकि द्वार अपने ऊपरी अंक में दो हाथियों की प्रतिमा लिए हुए है। अपने जालीदार काम की वजह से यह वाक़ई बड़ा ही सुंदर बन पड़ा है। द्वार की छत पर भित्ति चित्र बने हुए हैं। भारी-भरकम काठ के किवाड़ों में लोहे के मोटे शूल ठुंके हुए हैं। जैसे ही इससे अंदर दाखिल हुये कि स्वयं को हमने चारबाग शैली के प्रांगण में पाया। पता नहीं यह बाद में बनाया गया है कि पहिले की कारीगरी है। इसके उस पार लंबाई अधिक और चौड़ाई औसतन वाला एक बरामदा हमें नज़र आया। वह किस काम आता होगा सो तो हम नही जानते किंतु अनुमान से हम यह कह सकते हैं अस्थायी आगंतुकों के लिए वह काम में लिया जाता होगा। हाथी पोल गेट के एक बाजू से सीढियाँ उपर की ओर गईं हैं और दूसरी बाजू में कमरे हैं। हम कह सकते हैं कि वह दस्तावेज़ीकरण के काम में लिया जाता होगा ऐसा इसलिए कि क्योंकि इसी इमारत के ऊपरी तल पर राज्यसभा का बोध कराने वाला लंबा-चौड़ा बरामदा है। मनमोहक हाथीपोल के सिवाय हमें अधिक और वहां कुछ न दिखाई दिया। तब दाहिने हाथ से हो एक ज़ीने पर चढकर हम ऊपरी मंजिल यानि प्रथम तल पर पहुँचे। यह सीढियाँ किसी दीवाने-आम जैसे मुकाबिले में आपको ले जा छोड़ती हैं। यह काफी विशाल बरामदा है जिसमें खालिस संगेमरमर का बना हुआ सिंहासन भी रखा हुआ है। मुमकिन है राव राजा यहीं दरबार करते हों। एक राज्यसभा कक्ष जितना बडा बरामदा यह खूब है। बरामदे से पार हो एक तंग सीढ़ीखाने से हम कुछ नीचे आये। जैसे ही सीढ़ियों से उतर कर छत के आंगन में आये कि वाह! गजब! क्या खूबसूरत नजारा पाया! क्या देखते हैं कि बायें हाथ को एक छतरी है। दालान के बीचोंबीच बावड़ीनुमा एक गहराई है। संभवतः जल भर कर रंग-बिरंगी मछलियाँ उसमें छोड़ दी जातीं होगीं। दालान के उस पार फिर एक छतरी और जिसमें खड़े होकर जो नजारा हमने नवल-सागर झील का किया है कि बस क्या कहिये! दालान के दाहिने हाथ में एक कक्ष है जिसमें पत्थरों के खंभों पर छत टिकी हुई है। खंभों के ऊपरी हिस्से में पीछे से पीछा लगा कर, चारों विपरीत दिशाओं से, एक-एक हाथी सूंड को इस तरह उठाये हुए है मानों छत को अपने दम से उठा रखा हो। छूकर भी कोई कह नहीं सकता कि ये काले हाथी पत्थर के नहीं हैं। हमें भी पता तब चला जब एक हाथी का सूंड टूटा हुआ दिखाई दिया कि अरे! यह तो लकड़ी की कारीगरी है। यह सब देख-भाल कर पुनः हम दालान में आये और इसके बायें छोर स्थित एक और बरामदे में पहुँचे। अन्यों के बनिस्बत इसमें अधिक साज-सजावट थी। दीवारों पर तो पेंटिंग्स थीं ही, फर्श भी खूब सुंदर पत्थरों के डिजाइन से भरा देखा। फर्श से सुंदर बरामदे का अर्श देखा। फिर अंदर एक कमरे में गये। इसकी दीवारों में बहुत-बहुत पुरानी रंगीन कलाकृतियां बनीं हुईं हैं। लाल रंग के प्रयोग की इन रंगीन भित्तिचित्रों में प्रधानता है। इस कमरे के पार एक बालकनी है जहाँ से संभवतः बूंदी का सर्वश्रेष्ठ दृश्य नजर पड़ता है। वहां जाने की अनुमति नहीं है किंतु द्वारपाल को सुलटा कर हम वहां अवश्य गये। इस बालकनी वाले कमरे के भीतर चांदी में जैसे ढला हुआ एक अौर दरवाजा है जो किसी भीतरी कक्ष में जाता है। मुमकिन है राज्यसभा से अवकाश के दौरान राव राजा विश्राम हेतु उसमें जातें हों। अभी हेतु तो एक मोटा ताला वहां जड़ा हुआ है। खूब ही दीदार कर किले से लौटने का उपक्रम हमने किया। वापसी में किले की खूबसूरत छतरियों का नजारा किया। भौंचक्क रह जाने की सिविल इंजीनियरिंग है कि कैसे इन छतरियों की इतनी भारी पंखों को सटीकता से काटकर ऐन बिलकुल मौके पर जड़ दिया गया। सारे राजपूताने के किले-महलों में ऐसी ढलानदार सुंदर छतरियां देखने को मिलतीं हैं। सुना था कि किले में कुछ ऐसे जलाशय हैं जिनके बनाने की कला कभी की लुप्त हो चुकी किंतु आज भी उनका जल सूखता नहीं है। अथवा तो सामने होने पर भी हम ही उन्हें जान न सके या फिर हम उन्हें देख नहीं सके क्योंकि किले की बहुत सी जगहें देखने के लिये प्रतिबंधित हैं।

भीम बुर्ज

सोलहवीं शताब्दी में बनी भीम बुर्ज रक्षा व आक्रमण का केंद्र बिंदु कभी रही है। कहा जाता है कि कभी एक बड़ी भारी तोप इस बुर्जी पर रखी रहती थी। नाम था उसका गर्भ-गुंजम। नाम से ऐसे प्रतीति होती है कि वह भयंकर तोप अपने धमाकों से शत्रु के उदर में हलचल मचा दिया करती होगी। भीम बुर्ज से थोड़ा आगे एक सीढीदार बावड़ी है और उससे कुछ आगे एक छतरी। इस छतरी से आप जैत-सागर झील का विहंगम दृश्य देख सकते हैं।

गढ़ पैलेस

तारागढ़ किले में ही है बूंदी महल जो गढ़ पैलेस के नाम से भी ख्यात है। किले से कुछ गुमनाम सीढियाँ महल की ओर यहां-वहां इमारतों से जाती हैं हालवक्त जिन्हें बंद किया हुआ है। यही क्यों, महल का ज्यादातर हिस्सा प्राइवेट प्रापर्टी होने की वजह से आम आवाजाही के वास्ते बंद है। महल में एक बाग है जिसमें फूलों की क्यारियाँ और हरी मखमली घास के कालीन हैं। कहा जाता है कि अठारहवीं सदी के उतरार्द्ध में राव राजा उमेद सिंह ने इसे बनवाया था। छोटे बगीचों के बीच एक ताल है जिसे हमने शाही जनों के डुबकी मारने का पूल समझा किंतु वहां मौजूद एक बुजुर्ग ने जतलाया कि यह राजा के टाइम पास करने की जगह हुआ करती थी। ताल के चारों कोनों पर बैठने के आसन हैं। ताल में रंग-बिरंगी मीनें भी छोड़ी जातीं थीं। महल की ऊपरी छत से बूंदी नगर का बड़ा ही भव्य नजारा दिखाई देता है। गढ़ पैलेस में सबसे ज्यादा दिलकश जो जगह है वो उमेद भवन “चित्रशाला” है। बगीचों के अंतिम छोर से कुछ सीढियाँ चढ़ कर हम इस कला-दीर्घा में पहुँचे। कितने ही अनदेखे रंगों से क्या खूबसूरत भित्तिचित्र बनाए गये हैं! पहली नज़र में गहरे नीले और हरे रंग के समुद्र में गोता लगा देने का अनुभव आता है। दीवारों पर कहानियाँ बयान करतीं ये तसवीरें न जाने कितने किस्से समेटे हुए हैं। कहीं युद्धों की तसवीरें हैं तो कहीं देवताओं की। कहीं जानवरों के चित्र हैं तो कहीं राजसी ठाठ की झलक। श्री कृष्ण की लीलाओं से लेकर राव राजाओं के समय तक की कितनी ही घटनाएँ चित्र-रुप में यहां अंकित हैं। दीवारों और छतों का कोई कोना जाया छोड़ दिया गया हो, ऐसा नजर नहीं आता। और क्या कहें जबकि दरवाजों तक पर हाथीदांत का काम किया गया है। नाथद्वारे के श्रीनाथ धाम का भित्तिचित्र अंकित है तो श्रीराम विवाह और बारात के चित्र भी उकेरे गये हैं। एक चित्र में गजलक्ष्मी पर जलाभिषेक करते हाथी भी दिखाये गये हैं। यह सारे भित्तिचित्र बरामदों में छत के नीचे संरक्षित हैं। इन बरामदों के बीच कुछ खुले आसमान वाली जगह है ठीक जिसके बीचोंबीच एक बावड़ीनुमा गहराई है। यह बिलकुल वैसी है जैसी हमने पिछली इमारत में देखी थी। बूंदी के किले में बंदर बहुत हैं। इन मर्कटों की धमाचौकड़ी से “चित्रशाला” को बचाने की लिए नवों दिशाओं से इसे लोहे की जालियों से ढका गया है। इस तरह सैंकड़ों सालों से ये अद्भुत कलाकृतियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने की गरज से सरंक्षित की जाती रहीं हैं, बावजूद इसके कुछ मूढ़ लोग खरोंच मार ही जाते हैं। यहां वहां नाम-ओ-निशान गोदने को उतारू विक्षिप्त बुद्धि मानुष सारी जगहों पर मिल जायेगें। तो ऐसी बातों से परेशान हो गोवा का खेती-बाड़ी मंत्री अगर ऐसे गैर-जिम्मेवार लोगों के विरुद्ध कुछ कहता है तो जन को गुस्सा नहीं दिखाना चाहिए, अपितु उसके निहितार्थ की गांभीर्यता को समझ लेना चाहिये।

सुख महल

अंग्रेजी उपन्यासकार रुडयार्ड किपलिंग एक दफे यहां ठहरने आये थे। अगर जो अभी तक आपने यहां का नजारा किया नहीं तो कल्पना कीजिये इसकी सुषमा की, कि यहीं बैठ कर किपलिंग ने अपने मास्टरपीस “किम” की रचना की थी। गढ़ पैलेस, तारागढ़ किला और सामने पसरी जलराशि की अग्र व पृष्ठभूमि से मिल कर सुख महल से दिखाई देने वाला ऐसा खूबसूरत नजारा बनता है ​​कि किसी सबसे बेचैन दिमाग को भी सुकूनबख्श रखेे।

झील, बावड़ी व छतरियां

नवल सागर एक विशालाकार चौकोर झील है जिसमें वरुण देव को समर्पित एक मंदिर है। जितना पुराना बूंदी का किला है करीब इसी के साथ का नवल सागर सरोवर है। पंद्रहवीं सदी में राव राजा भोज ने इसे गहरा कराया और मोती महल की सौगात भी इसे दी। पहाड़ियों से घिरी जैत सागर झील की सुंदरता भी अनुपम है। इसके इलावा कुछ और भी मशहूर झीलें हैं। ऐतिहासिक होने के साथ-साथ वे महत्वपूर्ण भी हैं कि जल का महती स्त्रोत हैं। कितनी ही बावड़ियां इनके जल से आज तक तृप्त होतीं हैं। बूंदी में पचास से जियादा तो सीढ़ीदार बावड़ी बताई ही जाती हैं। बूंदी में असंख्य तो छतरियां ही अस्तित्व में हैं। बावन खंभों की छतरी उनमें सबसे प्रसिद्ध है।


दुःख का किस्सा यह है कि जल की पाइप आपूर्ति सिस्टम ने इन झीलों और बावड़ियों की शानो-शक्ल को खा लिया है। कितनी ही तो सूख चलीं हैं और ढेरों मलबे व झाड़-झंखाड़ में लुप्तप्राय होती जाती हैं। मनुष्य कितना निष्ठुर है। पाइप आते ही इन जलकूपों को लावल्द कर दिया। किंतु क्या पाइपों में जल की स्वापूर्ति हो जाया करेगी?

बूंदी भ्रमण हेतु टिप्स व ट्रिक्स…

बूंदी भ्रमण का सर्वोत्तम मौसम

सर्दियों में हल्के ऊनी कपड़े पर्याप्त रहते हैं। सुबह और शाम में ठंडी अधिक होती है। गर्मी तो राजस्थान की प्रसिद्ध ही हैं। लगभग पचास डिग्री तापमान तो पहुंच ही जाता होगा। हमारे विचार से मानसून का महीना बूंदी घूमने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। जिन्हें बारिश में भीगना पसंद नहीं उन्हें हमारी राय बचकानी लग सकती है। किंतु वास्तविकता यह है कि बरसात के दिन ही इधर को सैर-सपाटे के वास्ते सबसे अच्छे हैं। एक तो तापमान खुशगवार रहता है कि गर्मी परेशान नहीं करती। दूसरे किले से दूर-दूर तक जो पहाड़ियों की श्रृंखला दिखाई देतीं हैं वे हरियाली से ओतप्रोत नज़र आतीं हैं। तीसरी वजह बूंदी से थोड़ा बाहर है। करीब पच्चीस-तीस किलोमीटर दूर, बिजौलिया रोड़ पर, भीमलात वाटरफॉल है जो बूंदी-भ्रमण की अहम यादगार बन सकता है। वह बड़ा खूबसूरत स्थान है।

रुकना और खाना-पीना

हवेलियाँ और गेस्टहाउस बूंदी में बहुत हैं। हां, यह बहुत मुमकिन है कि उनमें पहुँचने के लिए कुछ न कुछ पैदल चलना पड़े। कितने ही रेस्त्रां तो हवेलियों के रुफ-टाॅप पर बने हुए हैं। बूंदी पैलेस की पृष्ठभूमि में ऐसे ही किसी हवेली के रुफ-टाॅप पर ठेठ राजस्थानी माहौल में शाम गुलजार करना जिंदगी-भर का यादगार लम्हा बन जायेगा। मेहमान नवाजी के लिए राजस्थान संसार में प्रसिद्ध है। करीब करीब हर बजट के कमरे बूंदी में आसानी से मिल जाते हैं।

खुलने का समय

सप्ताह भर किला खुला ही रहता है। सवेरे आठ बजे से शाम पांच बजे तक आप किले और महल में भ्रमण कर सकते हैं। बहुत सी जगहें ऐसी हैं जहाँ समय की पाबंदी नहीं है। वहां तक पहुँचने के लिए मुख्य द्वार के खुलने का इंतज़ार भी नहीं करना पड़ता। अनेकों बावड़ियां, छतरियां और ऐतिहासिक दरवाजे इस कैटेगरी में आते हैं।

शुल्क

भारतीय नागरिकों के लिए पच्चीस-पच्चीस रुपये प्रवेश शुल्क है। अभारतीय लोगों के लिए सौ रुपये की टिकट लगती है। फोटो कैमरा आप पचास रुपये के अतिरिक्त शुल्क पर इस्तेमाल कर सकते हो। वीडियो कैमरा इस्तेमाल करने के लिए सौ रुपये की टिकट लगती है। परिसर में तीन-चार जगहों पर टिकटें चेक की जाती हैं। टिकट-घर किले में प्रवेश के मुख्य द्वार ही पर है।

बूंदी कैसे पहुंचें…

सडक-मार्ग: बूंदी राजस्थान के कुछ बेहद लोकप्रसिद्ध स्थानों से नजदीकी दूरियों पर स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर जयपुर लगभग 200 किलोमीटर उत्तर में है। कोटा शहर दक्षिण में 40 किलोमीटर पर है। पश्चिम में झीलों की नगरी उदयपुर 300 किलोमीटर और मेवाड़ का गौरव चित्तौड़गढ़ 200 किलोमीटर दूर है। भगवान ब्रह्मा का एकमेव मंदिर पुष्कर 200 किलोमीटर और जोधपुर 300 किलोमीटर पश्चिमोत्तर है। चूंकि मार्ग बहुत बढ़िया नस्ल के हैं तो यह दूरियां कुछ घंटे ही मायने रखती हैं। हालांकि यहां कोई अंतर्राज्यीय बस अड्डा नहीं। किंतु 200-250 किलोमीटर के दायरे में सीधी बस सेवा जरुर हैं। भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, जयपुर और कोटा से सीधी बसें हैं। इसके अलावा टैक्सी सेवा तो इफरात में हैं ही। यदि चार-पांच सिर हैं तो शेयर्ड टैक्सी बहुत बढ़िया विकल्प हैं।

रेल-मार्ग: बूंदी शहर, कोटा-चित्तौड़गढ़ रेललाईन पर है। बूंदी रेलवे स्टेशन नगर-मध्य से कोई पांच किलोमीटर पर है। स्टेशन आने-जाने को ढेरों रिक्शे और तिपहिये चलते हैं। अपने आप में बूंदी कोई बहुत बड़ा रेलवे स्टेशन नहीं, इसलिए गिनी-चुनीं ट्रेनें ही उपलब्ध हैं। चूंकि रेलवे की समय-सारणी बदलती रहती है तो ट्रेनों का समय बतलाया जाने का औचित्य नहीं। सबसे नजदीकी बड़ा रेल स्टेशन कोटा जंक्शन है जो चेन्नई, मुंबई, दिल्ली और इंदौर शहरों से सीधी रेल सेवा से जुड़ा है।

वायु-मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा सांगानेर एयरपोर्ट, जयपुर में एक सौ तीस किलोमीटर दूर है। जयपुर सारे भारत और बहुतेरे विदेशी शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है।

Bundi Fort Entrance
↑ (1. तारागढ किला, बूंदी का प्रवेश-द्वार)

Ruins At Bundi Fort
↑ (2. हमें यह बैरकों के अवशेष प्रतीत होते हैं।)

Taragarh Fort Bundi Rajasthan
↑ (3. तारागढ किला, बूंदी, राजस्थान)

Bundi Fort Rajasthan
↑ (4. तारागढ किला, बूंदी, राजस्थान)

Hathi Pole Bundi
↑ (5. हाथी-पोल)

Arc Of Elephant at Taragarh Bundi Fort
↑ (6. अपनी सूंड बढाकर, हाथी-पोल की, मेहराब बनाते दो हाथी)

Murals On Roof Of Hathi Pole Bundi Fort
↑ (7. यह भित्तिचित्र हाथी-पोल की छत में उकेरा गया है। बीच में सूर्यदेवता की तसवीर है।)

Beautiful Forged Work Hathi Pole Bundi
↑ (8. हाथी-पोल का जालीदार काम)

Inner View Of Hathi Pole
↑ (9. हाथी-पोल का भीतरी दृश्य)

Cenotaph Of Fifty Two Poles Bundi
↑ (10. इन खंभों पर हाथियों के जो बुत हैं, वह लकडी के हैं।)

Cenotaph At Taragarh Fort
↑ (11. तारागढ किले में एक छतरी)

Murals On Walls Of Bundi Fort
↑ (12. तारागढ किले की दीवारों में बने हैं ये भित्तिचित्र)

Murals On Walls Of Taragarh Fort
↑ (13. बूंदी किले की दीवारों में बने हैं ये भित्तिचित्र)

Bundi City View
↑ (14. बूंदी शहर)

Umaid Palace Garden Bundi
↑ (15. गढ पैलेस में यह बागीचा और बावडी राव राजाओं के समय के बताये जाते हैं। बावडी काफी पुरानी लगती भी है। इसमें रंग-बिरंगी मछलियां भी छोडी जातीं थीं, ऐसा बताया जाता है। तसवीर में हमारे सहगामी सुंदर भाई बैठे हैं।)

Monkey At Bundi Fort
↑ (16. वानर और शिवलिंग, गढ पैलेस, बूंदी)

Garh Palace
↑ (17. उम्मेद भवन गढ पैलेस, बूंदी)

Chitrashala Bundi Palace
↑ (18. चित्रशाला में पुनः दरबार का दृश्य व पींग बढाती स्त्रियों के दृश्य)

Art Galley Bundi Fort
↑ (19. चित्रशाला की छत में सूर्यदेवता की तसवीर)

Murals On Garh Palace Bundi
↑ (20. सबसे ऊपर दरबार का दृश्य, इससे नीचे खाद्य-पेय सामग्री का दृश्य, इससे नीचे बायें हिरण संग आलाप व दायें नृत्य करती स्त्री का दृश्य, सबसे नीचे हाथियों पर युद्ध का दृश्य)

Wide View Of Chitrashala Bundi Palace
↑ (21. चित्रशाला)

Garh Palace Bundi Photo
↑ (22. गढ महल में विराज गये जाट लेखक)

Balcony Bundi Fort
↑ (23. भित्तिचित्रों से भरपूर बालकनी)

View Of Nawal Sagar Lake Bundi
↑ (24. नवल सागर झील का दृश्य)

Wooden Statue Found At Bundi
↑ (25. वीणाधारिणी देवी सरस्वती की काठ की मूर्ति)

Ancient War Shield Of Metal Found At Bundi
↑ (26. परंपरागत युद्ध में प्रयुक्त होने वाली ढाल)

बूंदी के निकट अन्य पर्यटक स्थल…
Chittorgarh Tourism
↑ चित्तौड़गढ़, राजस्थान
Menal Tourism
↑ मेनाल, राजस्थान
यात्रा-कथा की कड़ियां
  1. हाडौती-मेवाड़ यात्रा-वृतांत (मुख्य लेख)
  2. हाड़ौती का ग़रूर — बूंदी
  3. राजस्थान की नकाबपोश खूबसूरती — मेनाल
  4. मेवाड़ का गौरव — चित्तौड़गढ

3 टिप्पणियाँ

  1. वाह मंजीत भाई मजा आ गया...............👌👌👌

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  2. तारागढ़ , वो गढ़ पैलेस के ऊपर जो है , वोही है न भाई जी ? मैं समय की कमी से वहां नहीं जा पाया था अभी फरवरी में। लेकिन आपको पढ़कर और शानदार चित्र देखकर मजा आ गया !! बहुत बढ़िया

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