हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (लोसर से कुल्लू) भाग-05

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हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा का चौथा रैन-बसेरा लोसर तेरह हजार फीट से ज्यादा की उंचाई पर स्थित है। यह उंचाई बहुत तो है पर इतनी भी अधिक नहीं कि इंसान प्राण त्याग दे। तेरह हजार फीट तक ऑक्सीजन का स्तर इतना भी नहीं गिर जाता। हिमालय के इस पार तो चौदह-पन्द्रह हजार फीट की उंचाई वैसे भी आम होती है। पर गर्म मैदानों के प्राणियों के शरीर का क्या भरोसा? खुद को महामहिम समझने वाले बहुत से मैदानी जब स्पीति और लद्दाख की ऐसी उंचाईयों पर पहुँचते हैं तो उन्हें अपनी असली औकात पता चल जाती है। आमतौर पर यूं भी शांत ही रहने वाला मैं, इन पहाङों की असीमता के आगे नतमस्तक होकर और भी शांतचित हो गया। ये ऐसी जगहें हैं जो निःशब्द रहकर आदमी को उसके बौनेपन का सतत् बोध कराती रहती है।
आज मैं लोसर में हूँ जो काजा से मनाली की ओर जाते हुये स्पीति का अंतिम गांव है। आज बहुत कुछ आशातीत होने वाला है। कल आलू के साग के साथ चार रोटीयां खाकर मैं लेट तो गया था पर पूरी रात बेचैनी बनी रही। रात लगभग दो बजे तेज सिरदर्द भी हुआ जो सुबह तक जारी रहा। ठंड बहुत थी और हवा का घनत्व कम। रात भर सो नहीं पाये और जब सवेरे छह बजे बिस्तर छोङ कर मैं बाहर निकला तो बारिश बदस्तूर जारी थी। वाकई आश्चर्यजनक! स्पीति में इतनी बारिश! आशाओं से आगे पहली घटना। सामने के पहाङों पर रात को हुई ताजी बर्फबारी भी दिखाई पङी। बारिश के पानी में नहा-धोकर उजली हुई खङी मेरी मोटरसाईकिल जैसे मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। मानो कह रही हो कि आज उसे जुल्मोसितम से छुटकारा मिल गया। मैं मौसम का हाल देखते ही समझ गया कि आज वो सवारी नहीं बल्कि सवार बनने वाली है। जो कोई भी बजाज की एक्स.सी.डी. 125 से सुपरिचित है वो बखूबी जानता है कि यह मोटरसाईकिल बारिश में चलने के लिये मुफीद नहीं है। इसमें स्पार्क-प्लग ठीक आगे की ओर लगा होता है। अगले पहिये के चलने से जरा भी पानी छिटक कर आता है तो सीधा इसके स्पार्क-प्लग में जा घुसता है। परिणाम, मोटरसाईकिल सीधे-सपाट रोड पर भी हिचकियां लेने लगती है और अंत में दम तोङकर खङी हो जाती है। सरल अर्थों में कहने वाली बात ये है कि अब ये मोटरसाईकिल नहीं चलेगी। ऑक्सीजन की कमी का परिणाम ये पहले ही किब्बर जाते हुये दिखा चुकी है। वहां तो सङक भी ठीक थी। यहां तो आगे सङक के भी बुरे हाल में होने का अंदेशा है। इसकी बानगी तो मूरंग से ही देखते आ रहे हैं। लो भई! हो गया कल्याण। तारणहार तो खुद ही डूबी पङी है। फौरन जाकर रविन्द्र को खबरदार किया कि भाई किसी लोडिंग गाङी का इंतजाम करले, आज मोटरसाईकिल नहीं चलेगी। वो समझ रहा था कि मैं मजाक कर रहा हूँ, इसलिये नहीं उठा। पर बाद में जब होटल वाले के साथ मिलकर उसे समझाया तो उसे थोङा-बहुत यकीन होना शुरू हुआ। होटल वाला वाकई अच्छा इंसान था। कल वो हमें घर बात करने के लिये अपना बी.एस.एन.एल. मोबाईल सौंप कर चला गया था। होटल में डॉलर वाले भी थे और पांउड वाले भी, पर रुपये वालों की कद्र में कोई कमी नहीं थी, जैसा की-गोंपा में हमने देखा था। आपको भी याद होगा, वहां तो कहानी ही उल्टी थी। उससे बहुत सी बातें हुईं। अगर सारी लिखने लगा तो किताब बन जायेगी। वो बंदा रिकांगपिओ के एक गांव का है लेकिन लोसर में एक भवन किराये पर लेकर उसमें होटल चलाता है। सीजन के छह महीने लोसर में रहता है बाकि अपने घर। हिमालय का बङा इलाका घूम चुका है। जब मैंने उससे पूछा कि आगे यह थर्ड-क्लास सङक कहां तक मिलेगी तो बंदे ने स्पष्ट कहा कि अभी आपने थर्ड-क्लास सङक देखी नहीं है। अगर आप इस सङक को थर्ड-क्लास कहते हैं तो आगे की सङक फोर्थ या फिफ्थ क्लास की है। एक आदमी जो किन्नौर-स्पीति की सङकों का आदी हो, उसके मुंह से ऐसी बात सुनना आपके मुंह में दही जमा देगा।

हम अपना सामान पैक करने लगे। हमारे पास केवल एक ही जॉकेट थी। उसे रविन्द्र को दे दिया। ठंड बहुत थी सो सामान पैक करने के बाद मैं रजाई में ही घुसा रहा। रविन्द्र कमरे के दरवाजे के आस-पास घुमता रहता और कभी वापस आकर बैठ जाता। जब भी कोई गाङी आती तो हम भागकर जाते पर इन्कार होने की सूरत में वापस लौट आते। होटल वाले ने सलाह दी थी कि कोई स्पेशल गाङी करने की भूल न करें। यदि मनाली तक विशेष रूप से किसी को हायर किया तो सात-आठ हजार से कम में नहीं मानेगा। उसका कहना था कि इस तरफ से मनाली की ओर खाली लोडिंग गाङियां भी चलती हैं। अगर उनमें से कोई मदद के लिये मान जाये तो दो-तीन हजार में काम बन सकता है। नौ बजने को थे पर कोई गाङी नहीं मिली, आशाओं से आगे दूसरी घटना। समझाने के बावजूद रविन्द्र बार-बार मोटरसाईकिल पर चलने के लिये दबाव बना रहा था। रविन्द्र को हिमालय का अनुभव नहीं, इसलिये ऐसी बात कर रहा था। उसका कहना था कि अगर हम आराम से चलते रहें तो कोई दिक्कत नहीं आयेगी। लेकिन मैं बखूबी समझ रहा था कि मौसम, सङक, उंचाई और हमारा वजन, ये चारों चीजें मिलकर बाईक को दस किलोमीटर भी नहीं चलने देंगीं। सबसे बङी बात कि आगे कुंजंम खङा है। लोसर में ही बादल घुमङ-घुमङ कर बारिश कर रहे हैं। सामने पहाङों पर बर्फ दिख रही है। अगर यहां ये हाल है तो कुंजम पर हालात बेहद खराब होंगें। इन परिस्थितियों में कुंजंम पास को इस मोटरसाईकिल पर पार करने की सोचना ही बेवकूफी है। नहीं, मैं किसी भी कीमत पर अब बाईक की सवारी पर आगे नहीं बढूंगा। ये अपने पैरों पर जबरदस्त कुल्हाङी मारने जैसा होगा। रविन्द्र लाख कहता रहा कि चल। मैं लाख मना करता रहा कि नहीं चलूंगा।

और इसी रस्साकशी में एक और लोडिंग गाङी आ गई। भाग कर उसे रूकवाया गया। पहले वो थोङा हिचकिचाया पर हमारे बार-बार विनती करने पर मान गया। बंदा कुल्लू जा रहा था यानि हमें पौने दो सौ किलोमीटर की लिफ्ट मिल रही थी। भाव-ताव करने की बारी आई तो वो बोला कि जो आप जो चाहो वो दे देना। लेकिन ऐसी मौकों पर पहले ही सारी खोल-बांध कर लेनी चाहिये। हमारे बार-बार कहने पर उसने कहा कि चलो ठीक है, प्रंद्रह सौ रुपये दे देना। हम खुश होने के साथ-साथ हैरान रह गये। यार, बंदा केवल शक्ल से ही नहीं दिल का भी भला लगता है। कुल्लू तक लिफ्ट मिलना ही आशातीत था इस पर भी पौने दो सौ किलोमीटर तक हमें और मोटरसाईकिल को ढोने के मात्र 1500 रुपये! लिदांग में हम देख ही चुके थे जब बुलेट वालों से केवल 19 किलोमीटर के 1500 रुपये मांगे गये थे। यह थी आशाओं से आगे तीसरी घटना।

लोसर से कुंजुंम-ला: बाईक को गाङी में चढा कर बांध ही रहे थे कि हमारे जैसा एक और दुखिया वहां पहुँच गया। वे दो थे और कोकसर तक हमारे जैसा ही इंतजाम चाहते थे। उनकी मोटरसाईकिल बिल्कुल ठीक थी पर शारीरिक शक्ति जवाब दे गई थी। किसी काम से गाङी वाले महाशय को भी रोहतांग से पहले एक बार कोकसर जाना था पर गाङी में दो मोटरसाईकिलों की जगह नहीं थी। अफसोस! बाईक को पीछे बांधकर हमने बैग भी झटपट गाङी में पटके और लगभग दस बजे लोसर से विदा ले ली। यद्यपि मैं न जूते पहने हुये था और न ही गर्म कपङे तो भी गाङी के इंजन ने चैंबर को गर्म कर रखा था इसलिये जाङा नहीं लगा। लोसर से निकलते ही सङक ने ट्रेलर दिखाना शुरू कर दिया। बेहद उबङ-खाबङ है। कुंजम-ला तक पहुँचने में ही एक घंटे लग गया।

कुंजुम-ला (Kunzum Pass or Kunzum La): कुंजुम पास लाहौल घाटी को स्पीति घाटी से जोङता है। बी.आर.ओ. के अनुसार इसकी उंचाई 4551 मीटर है यानि लगभग पंद्रह हजार फीट। हिमालय में और भी बहुत से दर्रे हैं पर कुंजुम की एक अलग ही बात है। बङी आशाऐं लेकर आया था कुंजुम दर्रे की ओर लेकिन खराब मौसम ने सब मटियामेट कर दिया। बादल इस कदर नीचे उतरे हुये थे कि जबरदस्त धुंध छाई हुई थी। ताजी बर्फबारी भी हुई थी। अगर मौसम साफ होता तो मेरा प्लान चन्द्रताल का भी था। चन्द्रताल एक बेहद मोहिनी हिमालयी झील है जो कुंजुम पास से लगभग बारह किलोमीटर दूर है। करीब दो किलोमीटर तक ट्रेकिंग करनी होती है बाकि रास्ता वाहन से भी तय कर सकते हैं। कोई दिलेर हो तो ट्रेकिंग करके कुंजुम से सीधे ही बारालाचा-ला जाया जा सकता है। कुंजुम से चन्द्रताल, चन्द्रताल से टोपको-गोंगमा, टोपको-गोंगमा से टोपको-योंगमा और टोपको-योंगमा से बारालाचा-ला। इन सभी जगहों के बीच की दूरी दस-दस, बारह-बारह किलोमीटर है। कुल मिलाकर तीन-चार दिन का ट्रेक है। इसी ट्रेकिंग रूट पर चलते हुये बारा-शिगरी ग्लेशियर के भी दर्शन होते हैं जो हिमाचल प्रदेश का सबसे बङा और गौमुख के बाद हिमालय का सबसे बङा ग्लेशियर है। यह रूट काजा (या कुंजुंम) और लेह (या बारालाचा-ला) के बीच लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी कम करता है। अभी तो ट्रेकिंग वाला ही है पर क्या पता कब मोटरों के लिये खुल जाये। आखिर इसी सितंबर में शिंगो-ला भी तो मोटरों के लिये खुल ही गया है जिसने दारचा-पदुम के बीच मोटरों के आवागमन के लिये लगभग ढाई सौ किलोमीटर की दूरी कम कर दी है और लेह का चक्कर लगा कर आना अब जरूरी नहीं रहा। खैर अब वापस आ जाईये, उस ओर फिर कभी लेकर चलूंगा। कुंजुम पास पर केवल एक कमीज, पैजामे और चप्पलों में ठिठुरते हुये कुछ फोटो लिये, कुंजा देवी को प्रणाम किया और नीचे उतर गये। यहां एक बात देखी कि जो भी आ रहा था हरेक कुंजा देवी के मंदिर की परिक्रमा जरूर कर रहा था।

लोसर से ग्रम्फू: लोसर के बाद ही से वीराना शुरू हो जाता है। न पेङ-पौधे दिखते हैं और न ही आबादी। स्पीति पीछे छूट जाती है और दरिया-ए-चेनाब साथ हो लेती है। वही चेनाब जो बारालाचा-ला के पास से जन्म लेती है और जिसके साहिलों पर मैदानों में प्यार की पींगें बढती रहीं हैं, खासतौर से पंजाब में। हालांकि यहां इसका नाम चन्द्रा है। चन्द्रा घाटी में किसी सङक नाम की चीज की कल्पना न करें। पहाङ टूट कर गिरते रहते हैं और उन्हीं के उपर से गाङियां निकलती रहती हैं। कभी यह मार्ग उंचाई पर जा चढता है तो कभी चन्द्रा के इतनी करीब आ जाता है कि आप चाहें तो रास्ते पर ही बैठकर अपने पैर नदी के पानी में लटका लें। इसी अनगढ रास्ते के पत्थरों पर जगह-जगह अनेक झरने अपना सिर पटकते रहते हैं। ये असंख्य हैं जो उपर के पहाङों से धङाम से गिरते हैं और चन्द्रा की गोद में समा जाते हैं। यहां का भूगोल ही ऐसा है कि सङक बन ही नहीं सकती। चन्द्रा घाटी में कुंजुम के बाद सबसे पहले आता है बटल और उसके बाद छोटा-धारा। छोटा-धारा से कुंजुम की दूरी है चालीस किलोमीटर और मनाली की सवा सौ किलोमीटर। छोटा-धारा में हिमाचल सरकार का रात्रि-विश्राम गृह है। छोटा-धारा से दो ट्रेकिंग मार्ग निकलते हैं। पहला बारा-शिगरी ग्लेशियर को और दूसरा सारा-उमगा पास से होते हुये पार्वती वैली, मणिकर्ण और वहां से कुल्लू को। छोटा-धारा से पंद्रह किलोमीटर आगे है छतरू। छतरू से भी एक ट्रेक हामता पास से होकर कुल्लू की ओर निकलता है। छतरू और छोटा-धारा दोनों ही कैंपिंग के लिये परफेक्ट जगह हैं। छतरू में भी एक सरकारी रेस्ट-हाउस है। छतरू से आगे घास दिखने लगती है। यहां कुछ दुकाने हैं जहां हमने चाय पी और गाङी वाले ने चावल-राजमा खाया। बादल और बारिश लगातार साथ बने हुये थे। छतरू से ग्रम्फू की ओर जाते हुये बारिश बढती ही गई। मैंनें रविन्द्र की हंसी उङा दी कि बता अगर तेरी जिद मानकर मोटरसाईकिल पर ही निकल पङते तो? “प्राणांत तय था” कहकर वो भी हंसने लगा। वाकई 125 सीसी की बाईक दो सवारियों को लेकर किसी भी तरह मनाली-काजा रूट को पार नहीं कर सकती है, एकल सवारी की बात अलग है। कम से कम मैं तो ऐसा बेवकूफी भरा काम करने की सलाह नहीं दूंगा। यह ऐसा रूट है जिस पर 350 सीसी बुलेट की भी मैंनें घिग्घी बंधती देखी है। ग्रम्फू पहुँचने के बाद उस NH-05 का समापन हो गया जो बी.आर.ओ. के अनुसार विश्व की सबसे दुर्गम सङक है।

ग्रम्फू से कुल्लू (वाया मनाली): ग्रम्फू तिराहे से दायें हाथ वाली सङक लद्दाख और बायें हाथ वाली सङक रोहतांग चली जाती हैं। पहले हमें कोकसर जाना पङा क्योंकि वहां गाङी वाले को कोई काम था फिर उसके बाद वापस रोहतांग की ओर लौटना पङा। इसी बहाने लद्दाख रोड पर भी पहले कदम पङे। अब शीघ्र ही लद्दाख भ्रमण का कार्यक्रम भी तय करूंगा। ग्रम्फू से रोहतांग वाली सङक तो बिल्कुल चकाचक बनी है, चौङी भी है। मैं पहली बार रोहतांग-मनाली की ओर आया था इस पर भी इन दोनों ही जगहों के लिये मेरे अंतस में कोई रूचि नहीं जागी। कारण एक तो वैसे ही मौसम खराब था। धुंध और बारिश ने जैसे सारी खूबसूरती को अदृश्य कर रखा था। दूसरा कारण ये भी था कि जो किन्नौर और स्पीति की रूप में सोने का दीदार कर आया हो उसके लिये जगहें मिट्टी के समान हैं। स्पीति के नजारों का चश्मा पहन कर आप रोहतांग-मनाली की खूबसूरती को देख ही नहीं सकते। जब रोहतांग पहुँचे तो बारिश हल्की थी। जबरन यहां के एक-दो फोटो लिये और चल पङे। मढी में रूक कर चाय पी जिसके पैसे गाङी वाले ने दिये। जब मनाली पहुँचे तो दिन ढल रहा था और घनघोर बारिश हो रही थी। तो इस प्रकार अगर हम मनाली रुकना भी चाहते तो रूक नहीं पाते। बिना रूके कुल्लू की ओर चल दिये। कुल्लू पहुँचने तक पूरी तरह अंधेरा हो गया था। बस स्टैंड के ठीक सामने एक होटल में कमरा बुक करके अपनी बाइक उतारी। गाङी वाला 1400 रूपये में मान गया। गाङी में चलकर आये थे फिर भी मार्ग के हिचकोलों ने हालत खराब कर दी थी। पास के एक भोजनालय में जाकर टिक्कङ खाये और पङकर सो गये।

Kunzum La, Himachal Pradesh
कुंजुंम दर्रे पर ठिठुरता जाटराम।
Snow at Kunzum La, Himachal
कुंजुंम दर्रे पर ताजी बर्फ और धुंध।

Temple, Kunzum La, Himachal Pradesh
कुंजा माता मंदिर

Snowfall at Kunzum Pass, Himachal Pradesh
कुंजुंम रेंज पर ताजी बर्फ

Chandertal, Kunzum Pass, Himachal Pradesh

Batal, Himachal Pradesh
बटल के पास।

Chandra River, Himachal Pradesh
छोटा-धारा के पास।

Manali to Kaza Road Conditions
बायें चन्द्रा नदी और दायें किनारे-किनारे चलती सङक।

Chenab River Valley

Chenab River, Himachal Pradesh
चन्द्रा नदी

Chenab River and Road

Bad Road Conditions in Chandra River Valley
चन्द्रा घाटी में दुर्लभ थोङी सी अच्छी सङक

Chatru, Himachal Pradesh
छतरू पुल

Shops at Chatru, Himachal Pradesh
छतरू

Mountains at Chatru, HP

Snow Capped Mountains at Chatru, Himachal
छतरू
Chatru, Himachal Pradesh
बायें चट्टान पर बैठा श्वान दिखा?
Flaura and Fauna at Chatru, Himachal Pradesh
अब दिखा?
Manjeet Chhillar at Chatru, Himachal Pradesh
पत्थर पर बैठा जाटराम।

Hamta Pass Trek, Chatru, Himachal Pradesh
छतरू

Waterfall on Manali Kaza Road

Waterfall on Manali Kunzum Road

Waterfall

Koksar
कोकसर

Leh Road, Koksar
कोकसर से लेह को जाती सङक।

gramphoo
ग्रम्फू तिराहा। सामने की सङक लेह की ओर तथा नीचे की सङक काजा को जाती है।

Rohtang Pass
रोहतांग पास।

Rohtang La
रोहतांग में ठिठुरता रविन्द्र।

Raining at Rohtang
रोहतांग में शीशे पर दिखती बारिश।

Kullu Night Stay
कुल्लू में रात का ठिकाना।

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1. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (दिल्ली से नारकंडा) भाग-01
2. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (नारकंडा से कल्पा) भाग-02
3. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (कल्पा से चांगो) भाग-03
4. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (चांगो से लोसर) भाग-04
5. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (लोसर से कुल्लू) भाग-05
6. हिमाचल मोटरसाईकिल यात्रा (कुल्लू से दिल्ली) भाग-06
7. स्पीति टूर गाईड
8. स्पीति जाने के लिये मार्गदर्शिका (वाया शिमला-किन्नौर)
9. स्पीति जाने के लिये मार्गदर्शिका (वाया मनाली)

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