कामाख्या देवी मन्दिर, गुवाहाटी (शिलांग यात्रा - पाँचवां दिन)

बरसों से चले आ रहे धार्मिक कलह को आगे बढाने का मेरा यहां कोई इरादा नहीं है। अगर किसी की भावनाऐं आहत हों तो मुझे माफ़ कीजिऐगा, लेकिन स्थापित सत्य से कोई भी इसांन, चाहे वो किसी भी मजहब से ताल्लुक रखता हो, मुकर नहीं सकता है। हिन्दु धर्म में अन्य धर्मों की तरह भले ही बहुत से अंधविश्वास और कुरीतियां हो लेकिन युगों से फल-फूल रही इस सनातन विचारधारा ने कुछ ऐसे मापदंडों, नियमों और रीतियों-नीतियों को विकसित किया है जिनका यदि दृढता के पालन किया जाऐ तो जीवन के चारों आश्रम बहुत सहजता से व्यतीत हो जाऐगें, बेखटके। यकीनन इन्हें जीवन के कुशल संचालन हेतु ही बनाया गया है जो यदि टुटते हैं तो प्रतिफल के रुप में दुख ही मिलता है, फिर चाहे ये भगवान से टुटें या इंसान से। हिन्दु धर्म के अनेक नियमों में वे कसम भी शामिल हैं जो पडिंत महाराज आपको विवाह के फेरों की रस्म के समय खिलाता है। याद कीजिऐ इनमें पत्नी को एक कसम खिलाई जाती है कि अपने पति की आज्ञा के बिना वो कहीं नहीं जाऐगी यहां तक कि मायके भी नहीं। खटपट शुरु ही तब होती है जब पति-पत्नी इन खाई हुई कसमों की उल्टी शुरु कर देते हैं अर्थात इनका पालन नहीं करते। इंसानों का हाल तो आप सर्वत्र देख ही रहे हैं लेकिन जब ईश्वर तक इन नियमों को तोङते हैं तो रिज़ल्ट क्या निकलते हैं इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण तो भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे शक्तिपीठ ही हैं।

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अब देखिऐ शक्तिपीठों के मामले में सनातन धर्म के ये स्थापित मापदंड व नियम कैसे टुटते गये और क्या प्रतिफल मिलते गऐ।

एक कन्या (सती) ने अपने पिता (दक्ष प्रजापति) का कहना नही माना और भले ही स्वयं भगवान शंकर से, परंतु पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह कर लिया। एक नियम तोङा यानि अपने ही पिता का कहना नही माना। फलस्वरुप महलों के ऐश्वर्य से ख़ानाबदोश जीवन को प्राप्त हुई।

बिना निमंत्रण और पति की मर्ज़ी के विरुद्ध पिता द्वारा किऐ जा रहे यज्ञ-उत्सव में जा पहुँची और अपमानित की गई। एक और नियम तोङा (इसी नियम के लिऐ फेरों की कसम का नियम याद दिलाया गया था )। फलस्वरुप स्वाभिमान को ठेस पहुँची।

आवेश में आकर कोई भी कदम नहीं उठाया जाना चाहिऐ। बाद में इसके बुरे परिणाम स्वयं को ही भोगने पङ सकते है। यह नियम भी तोङा और अत्यधिक आवेश में आकर यज्ञ-वेदी में कूद गई। फलस्वरुप अपने ही जीवन से हाथ धोना पङा।

भगवान शिव को जब यह सूचना मिली तो वे तुरंत यज्ञ-स्थल पर पहुँचे और अग्निमान वेदी से अर्धांगिनी को कंधे पर उठा लिया। विरह-वियोग के कारण पूरी पृथ्वी पर पर्वतों और जंगलों में इधर-उधर पत्नी को कंधे पर लिऐ घुमने लगे। क्रोध के वशीभूत हो जब तांडव नृत्य करने लगे तो सृष्टि को बचाने के लिऐ भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती का मृत शरीर छिन्न-भिन्न कर दिया जिससे उनके शरीर के विभिन्न अंग भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह जा गिरे जिन्हें आज हम और आप शक्तिपीठों के रुप में जानते और मानते हैं।

यहां मेरा मकसद ज्ञान झाङना नहीं है। बस यह इंगित करना है कि हमें पूर्वजों की बातों को समझना और मानना चाहिऐ। ख़ैर अब वो शुरु करते हैं जिसके लिऐ यह ब्लाग मशहूर है और जिसके लिऐ आप भी यहां आऐ हैं- यात्रा-वृतांत।

कामाख्या देवी मन्दिर, गुवाहाटी, असम

उत्तर-पूर्व भारत की अपनी इस यात्रा पर आज मेरा पाँचवां दिन है। मैं कल शिलांग शहर, प्रतिष्ठित राजीव गांधी भारतीय प्रबंधन संस्थान, लुम स्थित नेहरु पार्क और उमियाम झील घुम कर गुवाहाटी लौटा था और राजमा-चावल खाकर यहीं स्टेशन के फर्श पर पन्नी बिछाकर सो गया था। दिल्ली से तो अकेला ही आया था पर कल शिलांग में दो हमजबाँ (हिन्दी बोलने वाले) साथी मिल गऐ थे जो मेरे साथ ही गुवाहाटी आ गऐ थे। हम तीनों को अलग-अलग ट्रेनों से आज रात घर लौट जाना था। तो सवेरे उठ कर तय कि आज कामाख्या मन्दिर चलेंगे। भारत-भर में फैले शक्तिपीठों में से यह भी एक है जो गुवाहाटी स्टेशन से करीबन दस किलोमीटर है। माना जाता है कि यहां देवी सती का योनि-स्थल गिरा था। यह मन्दिर नीलांचल पर्वत पर है। मन्दिर तक पहुँचनें में कोई मुश्किलात नहीं आतीं। टंपू और बसें खूब चलते हैं। गुवाहाटी स्टेशन के सार्वजनिक बाथरुम में नहाऐ, कपङे बदले औऱ चल पङे माँ कामाख्या के दर्शन करने।

कामाख्या मन्दिर की ओर

गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से काफी पैदल चलने पर बी.एस.एन.एल. का टेलिफोन एक्सचेंज आता है। यहां पहुँचते ही रवि भाईसाहब झाँसी वाले पलट गऐ। कहने लगे मैं नहीं जाऊंगा दर्शन करने। अरे भाई! क्या हुआ कुछ बता तो सही। तबियत ख़राब है क्या? बोले - नहीं सब ठीक है। लेकिन मुझे जाना ही नहीं है। मनाया भी पर नहीं माने और वापस लौट गऐ। हां संजीव होशंगाबाद वाले को कुछ पैसे दे गऐ कि मेरी तरफ से कामाख्या देवी के मन्दिर में कुछ प्रसाद चढा देना। ऐसे कई उदाहरण मैंने और भी कई जगह देखे है। लोग स्वयं नहीं जाते हैं बल्कि दुसरों को पैसे दे देते हैं कि मेरे नाम के भी चढा देना। जो वाकई किसी कारणवश जा नहीं सकते उनकी बात अलग है। लेकिन जो समर्थ हैं उनमें भी ऐसे बहुत हैं। अरे भाईसाहब! ईश्वर तुम्हारे पैसे का लालची नहीं है। वो तो बस श्रृद्धा और प्रेम का भूखा है। हां इन मन्दिरों में बैठे पण्डे और धर्म के ठेकेदार जरुर तुम्हारे पैसे के भूखें हैं। जितना मर्जी खिला दो, डकार तक नहीं लेंगे। इसका साक्षात् उदाहरण स्वयं मेरे साथ कामाख्या मन्दिर में हुई एक घटना है जो मैं मन्दिर से बाहर आते वक्त आपको बतलाउंगा। रवि के जाने के बाद मैं और संजीव टिकट ले कर बस में सवार होकर नीलांचल पर्वत की तलहटी तक गऐ। यहां से एक जीप में सवार होकर आगे कामाख्या मन्दिर तक। पर्वतीय सफ़र कोई खास रोमांचक नहीं है। है भी थोङा सा ही। किराया ठीक से याद नहीं है लेकिन शायद एक आदमी के कुल पच्चीस रुपऐ लगे थे। प्रसाद लिया और मन्दिर परिसर में जा घुसे। अंदर थोङा तिरछे घुम कर लोहे की जालियों की रेलिंग बनाई गई है जिसमें लाईनों में लगकर दर्शन करने होते हैं। ये जालियां लगभग खाली ही थीं। हम दौङे-दौङे जा रहे थे। यहां आतकीं बंदर भी हैं जो आपकी थैली छिनकर भी ले जा सकते हैं। तेजी से चलते हुऐ एक जगह रुक जाना पङा। घनघोर लाईन जो शुरु हो गई थी। मुख्य गृभगृह लगभग डेढ सौ मीटर ही दुर रहा होगा। हम खुश थे कि यहां से जल्दी निपट लेंगे और फिर कहीं दुसरी जगह भी घुमने जा सकेंगे। मगर यहां जो वक्त लगा दर्शन करने में, उफ! क्या बताऊँ आप भले मानुषों को। साढे छह बजे लाईन में लगे थे, साढे ग्यारह बजे मुख्य गृभगृह के भीतर प्रवेश हुआ। खङे-खङे पावों में लहू उतरने को हो गया। धोक लगाने (to pay homage to the Mighty) तक पहुँचे तब तक आधा घंटा और लग गया। मंदिर के कम्बख्त पण्डे मोटे पैसे लेकर धनवानों को वी.आई.पी. दर्शन करवाने के लिऐ बीच-बीच में सीधे ही अंदर तक पहुँचाते रहते हैं। इसलिऐ मेरे जैसे आम लोगों को काफी इंतजार करना पङ जाता है। नामचीन मंदिरों में आजकल ऐसा बहुत हो रहा है। आम जनता से जैसे कोई सरोकार ही नहीं है इन लोगों को। कहीं-कहीं तो ये कथित धर्म-ध्वज रक्षक आम जनता को हेय दृष्टि से देखते हैं। क्या ये लोग नहीं जानते कि अगर यही आम जनता यहां नहीं आऐगी तो कौन पुछेगा इन मंदिरों को? इसी कामाख्या मंदिर में लोभ के नग्न प्रदर्शन का भी साक्षी हुँ मैं। कामाख्या मंदिर के मुख्य गृभगृह के भीतर फोटो लेने पर सख़्त पाबंदी है। यदि आप फोटो खींचते हुऐ पकङे गऐ तो बगैर पूर्व चेतावनी के आपका कैमरा छिन लिया जाऐगा जिसके वापस मिलने की उम्मीद बेहद कम है। मुख्य गृभगृह के भीतर कुछ ऐसी व्यवसथा है कि दर्शनार्थियों की लाईन पुरे गृभगृह के अंदर ही अंदर एक सिहांसन की परिक्रमा करती हुई बाहर निकल जाती है। यह सिहांसन हॉल के बिल्कुल बीच में है और इसके ठीक पीछे है एक कक्ष जिसमें देवी की एक मूर्ति को रजस्वला होते दिखाया गया है। इस मूर्ति से ही खून की धार सी निकलती चली जाती है। जब तक आप लाईन में रहते हैं तब तक बिल्कुल मंथर गति से चलते हैं। जैसे ही देवी की मूर्ति के कक्ष तक पहुँचते हैं धक्कों द्वारा अचानक आपकी गति को बढा दिया जाता है। आप कुछ समझने की कोशिश करें तब तक आपको मूर्ति तक पहुँच दिया जाता है। धक्के यहीं नही रुकते। मूर्ति का अच्छे से दर्शन कर सकें उससे पहले ही धक्कों द्वारा आप दूर धकेल दिऐ जाते हैं। आम तौर पर लोगों को देवी की मूर्ति के दर्शन हो ही नहीं पाते हैं और केवल धार सी देखकर उन्हें बाहर आ जाना पङता है। कईयों को इतना भी नसीब नहीं हो पाता है। धक्के खाने के बाद जब मैं बाहर आ रहा था तो गृभगृह में ही मुझे एक जगह पैसे चढाने के लिऐ कहा गया। अपनी श्रृद्धा से मैंने एक रुपया चढा दिया। भई अपनी-अपनी गुंजाइश होती है। लेकिन अगले ही पल मेरी श्रृद्धा को फेंक दिया गया। क्यों? क्योंकि यह बेहद कम थी। कम से कम सौ रुपये का नोट चढाने को कहा गया। जाट बुद्धि खराब हो गई। पण्डे तेरी ऐसी की तैसी। अब तो ये एक रुपया भी नहीं चढाउंगा। अपनी मेहनत की कमाई को आदरपूर्वक उठा कर वापस जेब में डाला और बाहर निकल गया। फोटो खींचने का भी मन नहीं था। लेकिन फिर कुछ खींचे भी। क्यों ना खींचू फोटो? आखिर मेहनत की कमाई खर्च करके इतनी दूर आया हुँ। फोटो खींचे और फिर यहां लगाऐ भी। आप भी देखिऐ। मैं मानता हुँ कि फोटो बहुत खराब हैं। लेकिन ये कामाख्या मंदिर के अंदरुनी फोटो हैं। काफी दुर्लभ। इंटरनेट पर आसानी से मिलते नहीं हैं। वर्ष 2011 के बाद मिलने लगें हों तो मुझे मालूम नहीं 2011 से पहले तो नहीं मिलते थे।

कामाख्या मंदिर का अंदरुनी फोटो
सिहांसन रुपी आरती-स्थल। इसी के पीछे देवी की मूर्ति का कक्ष है।
कामाख्या मंदिर में सिहांसन का फोटो
इसी सिहांसन का एक और फोटो
कामाख्या मंदिर का अंदरुनी फोटो
गृभगृह की दिवार पर एक प्राचीन मूर्ति। ध्यान से देखिऐ दिख जाऐगी।
कामाख्या मंदिर में एक प्राचीन मूर्ति
गृभगृह की दिवारों पर ही एक और प्राचीन मूर्ति
कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर के बाहर फक्कङ घुमक्कङ
kamakhya temple dome
कामाख्या मंदिर का गुंबद। इस पर रिंगनुमा संरचनाऐं  बनी हुईं हैं।
कामाख्या मंदिर के बाहर बौना भिक्षुक
कामाख्या मंदिर के गृभगृह के बाहर एक बौना और इसके आस-पास मौके की तलाश में खङे पण्डे। ये पण्डे इसके द्वारा एकत्रित धन उठा ले जाने के लिऐ ही खङे है।
Night View of Guwahati Railway Station
रात के समय गुवाहाटी रेलवे स्टेशन

कामाख्या से गुवाहाटी वापस आते-आते चार बज गऐ। अब और कहीं जाने का समय नहीं बचा था। रेलवे स्टेशन पर आ गऐ। बैठे-बैठे बातचीत करते रहे। एक-दुसरे के अनुभवों को साझा करते रहे। शाम ढलते-ढलते संजीव की ट्रेन चलने का वक्त हो गया। उसे विदा करने के बाद स्टेशन पर कभी अंदर कभी बाहर टहलता रहा। बाद में रात नौ बजे की अपनी ट्रेन से मैं भी गुवाहाटी से निकल लिया।

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